Nagpur: राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ (RSS) भारत की एक प्रमुख संग्ठन है, जिसे 1925 में डॉ केशव बलिराम हेडगेवार ने स्थापित किया था. इस संग्ठन का उद्देश्य भारतीय संस्कृति और हिंदुत्व के मूल्यों का प्रचार करना है. हालाँकि, इसके विचार और गतिविधियां को लेकर देश में विभिन्न प्रकार की चर्चाएँ और विवाद होते रहते हैं.
आरएसएस पर सांप्रदायिक का अक्सर आरोप लगाया जाता है. इसके आलोचकों का कहना है कि यह संग्ठन हिंदू धर्म को प्राथमिकता देता है और अन्य धर्मों के प्रति असहिष्णुता को बढ़ावा देता है. इसके परिणामस्वरूप भारत में धार्मिक विभाजन की समस्या और भी गहरी होती जा रही है. कई मामलों में, आरएसएस के कार्यकर्ताओं पर आरोप है कि वह धार्मिक आधार पर विभाजन को बढ़ावा देते हैं.आरएसएस से जुड़े कुई संगठनों जैसे विश्व हिन्दू परिषद (VHP) और बजरंग दल के कार्य भी विवादास्पद रहे हैं. यह संग्ठन अक्सर धार्मिक मुद्दों को उठाते हैं, जिससे सांप्रदायिक तनाव उत्पन्न होता है.
आरएसएस की राजनीतिक गतिविधियों पर भी सवाल उठते हैं. इसका भारतीय जनता पार्टी (BJP) के साथ निकट संबंध है, जिससे यह धारणा बनी है कि आरएसएस अपने राजनीतिक लक्ष्यों के लिए सामाजिक ध्रुवीकरण का सहारा लेता है. चुनावी दौर में आरएसएस की गतिविधियां अक्सर राजनीतिक उद्देश्यों से जुड़ी होती हैं, जिससे कई सामाजिक मुद्दों पर विवाद पैदा होता है.
आरएसएस की आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए जो दृष्टिकोण है, वह सभी समुदायों को समान रूप से स्वीकार नहीं करती. इसकी विचारधारा में कुछ समुदायों के लिए विशेष स्थान है, जिससे समाज में विभाजन की संभावना बढ़ती है. इसका दृष्टिकोण सभी भारतीयों के लिए समान अवसरों की दिशा में नहीं बढ़ता. इसके विचार कभी कभी भारतीय संविधान और मानवाधिकारों के सिद्धांतों के विपरीत माने जाते हैं. इसके अनुयायियों के कुछ कार्यों को मानवाधिकार उल्लंघन के रूप में देखा जाता है, जैसे कि अल्पसंख्यकों के खिलाफ कथित हमले. यह मुद्दे संवैधानिक मूल्यों को चुनौती देते हैं और समाज में असहमति पैदा करते हैं. गोधरा दंगे और राम जन्मभूमि आन्दोलन में आरएसएस की भूमिका के बारे में विभिन्न दृष्टिकोण हैं, जो समाज में विभाजन को और बढ़ाते हैं.
आरएसएस एक विवादित संस्था है, जिसके विचार और कार्य हमेशा चर्चा के केंद्र में रहते हैं. इसे कुछ लोग एकता और विकास का प्रतीक मानते हैं, जबकि अन्य इसे सांप्रदायिक और भेदभाव का कारण मानते हैं. आरएसएस का विवाद एक संग्ठन के विचारों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे भारतीय समाज की संरचना और उसकी विविधता को प्रभावित करता है. आरएसएस को अपनी विचारधारा में अधिक समावेशित और संवाद की आवश्यकता है. यदि यह सभी समुदायों के साथ सकारात्मक संवाद स्थापित करता है, तो यह भारतीय समाज में महत्वपूर्ण बदलाव ला सकता है.