Madhya pradesh: मध्य प्रदेश में बुरहानपुर एक महत्वपूर्ण शहर है, जो अपनी एतिहासिक धरोहर और सांस्कृतिक विविधता के लिए प्रसिद्ध है. लेकिन कुछ वर्षों में यह शहर के सामुदायिक नेता श्री मौसिम उम्मेदी की पहल के कारण भी चर्चा में है. उन्होंने शादी को साधारण तरीके से करने की पहल की जिसकी वजह से आज वहाँ किसी पर शादी के खर्चे की फ़िक्र नहीं होती.
भारतीय समाज में शादी की पपरंपराएँ अक्सर भव्यता और दहेज की मांग से जुड़ी होती हैं. इस संदर्भ में तंजीम खुदाम ए मिल्लत संग्ठन के वरिष्ठ सदस्य मौसिम उम्मेदी ने एक महत्वपूर्ण पहल की है. उनका मानना है कि दहेज की प्रथा और भव्य शादियाँ समाज में कई समस्याओं का कारण बनती हैं. उनके अनुसार जब सभी परिवार साधारण विवाह करेंगे तो न केवल खर्च कम होगा, बल्कि सामाजिक दबाव भी घटेगा. उन्होंने “नो बैंड, नो बाजा , नो बारात, नो दहेज” के सिद्धांत को प्रस्तुत किया है, जो शादी की परंपराओं में सकारात्मक बदलाव लाने का प्रयास है. मौसिम उम्मेदी ने यह संदेश फ़ैलाने की कोशिश की है कि शादी का असली मतलब केवल दो परिवारों का मिलन है, न कि भव्य समारोह और दहेज की मांग.
बुरहानपुर में श्री उम्मेदी के प्रयासों के कारण अमीर और गरीब परिवारों के बीच का भेद मिट गया है. यहाँ शादी समारोह में कोई भी भव्यता नहीं होती साथ ही अमीर गरीब की शादियों में कोई फर्क भी नहीं दिखेगा. सभी लोग एक समान तरीके से शादी करते है, जिसमें न बैंड होता है, न बाजा और न ही बारात. यह पहल न केवल दहेज के मुद्दे को समाप्त करती है, बल्कि सामाजिक एकता को भी बढ़ावा देती है. यहाँ तक की शादी के बाद, आमतौर पर शरबत, पानी और चाय बिस्किट जैसे साधारण भोजन परोसे जाते हैं, जो इस बात का प्रतीक है कि सभी लोग एक समान हैं. यह न केवल खर्च को कम करता है बल्कि यह एकता और सामंजस्य का भी संदेश देता है.
बुरहानपुर में इस पहल के तहत दहेज संबंधित मौतें और उत्पीड़न की घटनाएँ लगभग समाप्त हो गई हैं. जब सभी परिवार एक समानता की ओर बढ़ते हैं, तो किसी भी परिवार पर दहेज का दबाव नहीं होता. श्री उम्मेदी की वजह से उनका यह सिद्धांत, समाज में एक नई सोच का निर्माण कर रहा है, जिसमें शादी को पवित्र बंधन के रूप में देखा जाता है, न कि व्यापारिक सौदे के रूप में. उन्होंने इस पहल को सफल बनाने के लिए स्थानीय स्कूलों और कॉलेजों में भी जागरुकता कार्यक्रम आयोजित किए हैं, जहाँ युवा पीढ़ी को दहेज और भव्य शादियों के नुक्सान के बारे में बताया जाता है. इसके अलावा, सामाजिक समारोहों में भी इस विषय पर चर्चा होती है, जिससे लोगों की सोच में बदलाव आ सके.
श्री उमैदी द्वारा बनाए गए इस सिद्धांत का समर्थन केवल बुरहानपुर के लोगों तक ही सीमित नहीं, बल्कि आस पड़ोस के अन्य समुदायों से भी इसे सराहना मिल रही है. कई अन्य राज्यों के समुदायों ने भी इस सिद्धांत को अपनाने की इच्छा जताई है. साधारण भोजनों के साथ यह शादी समारोह न केवल सरल है बल्कि समाज में एकता और सहयोग का भी प्रतीक है. यदि इस तरह के प्रयासों को पूरे देश में अपनाया जाए, तो हम दहेज प्रथा और भव्य शादियों की समस्या को समाप्त कर सकते हैं.