Uttar Pradesh: देश में धार्मिक स्थलों को लेकर विवाद तेज़ी से बढ़ रहा है. हाल ही में संभल के शाही जामा मस्जिद को लेकर हरिहर मन्दिर और अजमेर दरगाह में शिव मन्दिर का दावा किया गया था. अब इसी तरह का एक और ऐसा मामला बदायूं की जामा मस्जिद से जुड़ा हुआ है, जिसमें आरोप है कि मस्जिद का निर्माण नीलकंठ महादेव मन्दिर को ध्वस्त करके किया गया था.
बदायूं में मन्दिर होने का मामला 2022 में सामने आया था और अब इस पर अदालत में सुनवाई जारी है. हिंदू महासभा ने इस मामले में अदालत में याचिका दायर की थी, जिसमें उन्होंने जामा मस्जिद को मदिर होने का दावा करते हुए वहां पूजा अर्चना की अनुमति की मांग की थी. उनका कहना था कि मस्जिद का मौजूदा ढांचा एक पुराने मन्दिर को तोड़कर बनाया गया है. इस दावे के बाद से ही इस मस्जिद को लेकर विवाद गहरा हो गया है.
मस्जिद के इंतजामिया कमेटी ने हिंदू महासभा के इन आरोपों को सिरे से नकार दिया. मस्जिद कमेटी ने कहा कि जामा मस्जिद शम्सी करीब 840 साल पुरानी है और इसका निर्माण दिल्ली के सुलतान शमसुद्दीन अल्तमश ने करवाया था. मस्जिद कमेटी का दावा है कि यहाँ कभी कोई मन्दिर नहीं था और इस जगह पर केवल मस्जिद का अस्तित्व ही रहा है. मुस्लिम पक्ष का मनना है कि ऐसे मामलों को अदालतों में लाना देश की धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ है और इससे समाज में तनाव और विवाद बढ़ सकता है. इसे जल्दी निपटाना चाहिए ताकि समाज में शांति बनी रहे.
बदायूं के इस मामले में शनिवार को कोर्ट में सुनवाई हुई थी. कोर्ट ने मामले की सुनवाई के बाद अगली तारीख 3 दिसंबर 2024 तय की है. अब अदालत इस मामले पर फैसला करेगी की क्या हिंदू महासभा के दावे की सुनवाई की जा सकती है और क्या मस्जिद के निर्माण के समय नीलकंठ महादेव मन्दिर का अस्तित्व था या नहीं.