Prayagraj: महाकुंभ मेला जो हर 12 साल में एक बार होता है, भारत के सबसे बड़े धार्मिक आयोजनों में से एक है. इस बार के कुंभ ने एक भयावह घटना का रूप लिया. प्रयागराज में महाकुंभ के दौरान हुई भगदड़ ने कई परिवारों को जीवन भर के लिए तोड़ दिया. संगम तट के अलावा, सेक्टर 10 में ओल्ड जीटो रोड पर और सेक्टर 21 में उल्टा किला झूसी के पास भगदड़ की घटनाएं हुईं. इन घटनाओं में कई लोग घायल हुए, जबकि 30 से अधिक लोगों की मौत हो गई.
महाकुंभ में यह हादसा सिर्फ आंकड़ों का विषय नहीं है, बल्कि यह दिल को छेद देने वाली तस्वीरों से जुड़ा हुआ है. कुछ तस्वीरें तो ऐसी थीं, जो इस दुःख को शब्दों से कहीं अधिक कह जाती हैं. एक महिला अपने मृत परिजन के शरीर को पकड़कर उसे जिंदा करने की कोशिश कर रही थी, जबकि एक आदमी अपनी पत्नी के शव को काँधे पर उठाए इधर-उधर भटक रहा था. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस घटना पर संवेदनाएं व्यक्त की है.
विवाद का एक प्रमुख बिंदु विआइपी कल्चर भी रहा है. जब महाकुंभ जैसे आयोजनों में लाखों श्रद्धालु आते हैं, तो उन्हें उचित व्यवस्था की उम्मीद होती है. महाकुंभ में विआइपी के लिए ख़ास इंतज़ाम किए जाते हैं, जैसे अलग रस्ते, विशेष सुरक्षा और बैठने के लिए अलग जगह. वहीं आम श्रद्धालुओं को घंटों तक इंतज़ार करना पड़ता है. यह फर्क न सर्फ मानसिक रूप से तनावपूर्ण है, बल्कि यह सुरक्षा के लिहाज़ से भी खतरनाक हो सकता है, जैसा कि इस घटना से साफ़ दिखा.
अगर इतिहास पर नज़र डालें, तो महाकुंभ के दौरान भगदड़ जैसी घटनाएं पुरानी हैं. 1986 में भी महाकुंभ में भगदड़ मचने से 200 से ज़्यादा लोग मारे गए थे. इसके अलावा उज्जैन, नासिक और हरिद्वार में भी कुंभ के दौरान ऐसी घटनाएं सामने आई थीं. इन घटनाओं से यह सिद्ध होता है कि यह हादसे सिर्फ आज की बात नहीं हैं, बल्कि समय समय पर इन्हें देखा गया है.
समस्या तब और बढ़ जाती है, जब धार्मिक आयोजनों को लेकर लोगों की आस्था इतनी प्रबल होती है कि वह अपनी जान की प्रवाह किए बगैर उस स्थान पर पहुंचने के लिए अडिग रहते हैं. इस स्थिति में प्रशासन को भीड़ को संभालने में परेशानी होती है. लेकिन क्या यही कारण है कि आयोजकों को व्यवस्थाओं की कमी का खामियाज़ा भुगतना पड़ता है?