New delhi: सुप्रीमकोर्ट कोर्ट में आज 16 अप्रैल को वक्फ संशोधन क़ानून पर पहली सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पहले याचिकाकर्ताओं को अपनी दलीलें पेश करने के लिए कहा और उसके बाद केंद्र सरकार ने अपनी दलीलें पेश कीं। कौन सी दलीलें पेश कीं और कोर्ट ने उनसे क्या-क्या सवाल किए?
वक्फ़ संशोधन कानून पर सुप्रीम कोर्ट से हुई बहस
कोर्ट रूम बदली गई|
सीजेआई खन्ना ने सुनवाई शुरू होते ही कहा,
हम दो पहलुओं पर पूछना चाहते हैं| क्या हमें रिट याचिकाओं पर ख्याल करना चाहिए या उन्हें हाईकोर्ट को दे देना चाहिए। दूसरा, आप किन पोईन्ट्स पर बहस करना चाहते हैं? दूसरा पहलू हमें पहले मुद्दे पर फैसला लेने में मदद कर सकता है|
तबसे इसमें कई याचिकाकर्ता शामिल थे| इसलिए सीजेआई ने कहा कि वह आदाब बनाए रखने के लिए बहस करने वाले वकीलों के नाम पुकारेंगे।
याचिकाकर्ताओं की ओर से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने दलीलें शुरू कीं और बहेस को इस तरह ख़ुलासे में पेश किया:
संसदीय एक्ट के माध्यम से आस्था के ज़रूरी और अलग-अलग अंगों पर रुकावट किया जाता है। इनमें से कई प्रावधान संविधान के मज़मून 26 के खेलाफ करते हैं।
इसके बाद उन्होंने एक्ट की धारा 3(आर) का हवाला दिया| जिसमें एक स्तिथि है कि किसी शक्स को यह साबित करना होगा कि वह वक्फ बनाने के लिए कम से कम 5 साल से इस्लाम का हुक्म मान रहा है और प्रोपर्टी के लगन में कोई साजिश नहीं है।
उन्होंने कहा
अगर मैं वक्फ बनाना चाहता हूँ तो मुझे राज्य को यह दिखाना होगा कि मैं 5 साल से इस्लाम का हुक्म मान रहा हूँ। अगर मैं मुस्लिम पैदा हुआ हूँ तो मैं ऐसा क्यों करूंगा? मैं कितना अच्छा या बुरा मुसलमान हूं? क्या यह राज्य तय करेगा? मेरा ज़ाती कानून लागू होगा।
उन्होंने वक्फ-बाय-यूजर की चूक पर भी सवाल उठाया।
सिब्बल ने पूछा
कि वक्फ-बाय-यूजर नहीं हो सकता?
आप कौन हैं यह कहने वाले
इसके बाद धारा 3ए वक्फ-अल-औलाद पर पर उन्होंने सवाल उठाया।
सिब्बल ने पूछा
यह तय करने वाला राज्य कौन होता है| कि उत्तराधिकार कैसा होना चाहिए?
फिर सीजेआई खन्ना ने बताया कि हिंदुओं के मामले में संसद ने हिंदू उत्तराधिकार एक्ट बनाया है।
सीजेआई खन्ना ने कहा|
मज़मून 26 कानून बनाने से विधायिका को नहीं रोकता है। मज़मून 26 योनिव्रस्ल है सेकूलर है| सभी समुदायों पर लागू होता है। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम हिंदू सरपरस्ती अधिनियम आदि नाफ़िज़ किए गए हैं।
सिब्बल ने कहा कि उत्तराधिकार शक्स की मौत के बाद ही लागू होता है| और यहाँ राज्य शक्स की मौत के दौरान के पहलू में रुकावट कर रहा था।
इसके बाद सिब्बल ने प्रावधान धारा 3सी का हवाला दिया कि सरकारी प्रोपर्टी के रूप में पहचानी गई| प्रोपर्टी वक्फ प्रोपर्टी नहीं होगी| और सरकार का प्राधिकारी विवाद का फैसला करेगा।
सिब्बल ने कहा|
सरकार का एक अधिकारी अपने मामले में जज होगा। यह अपने आप में ग़ैरआईनी है।
सिब्बल ने धारा 3डी का हवाला दिया| जो ASAMR Act के तहत ASI महफूज़ यादगारों पर वक्फ के तामीर को गलत करता है।
सीजेआई ने तब बताया कि प्रावधान के मुताबिक़ यदि प्रोपर्टी वक्फ के तामीर के समय महफूज़ यादगार है तो ऐसा वक्फ गलत होगा।
सीजेआई खन्ना ने कहा
ऐसे मामले कितने होंगे|
सिब्बल ने जवाब दिया
जामा मस्जिद।
हालांकि सीजेआई ने कहा कि जामा मस्जिद को बाद में महफूज़ यादगार के रूप में बताया गया।
सीजेआई ने कहा
मेरे हिसाब से वजाहत आपके पक्ष में है। अगर इसे पुराने यादगार ऐलान किए जाने से पहले वक्फ ऐलान किया जाता है तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। यह वक्फ ही रहेगा आपको तब तक एतराज़ नहीं करनी चाहिए जब तक कि इसे महफूज़ यादें ऐलान किए जाने के बाद इसे वक्फ ऐलान नहीं किया जा सकता। ज़्यादा तर यादें पुरानीं मस्जिदें इस धारा के दायरे में नहीं आएंगी।
सिब्बल ने इसके बाद धारा 3ई का हवाला दिया जो अनुसूचित जनजातियों की प्रोपर्टीयों पर वक्फ के तामीर पर रोक लगाती है।