Odisha: ओडिशा, जो अपने समृद्ध इतिहास और संस्कृति के लिए जाना जाता है, भारत का सबसे प्राचीन नृत्य आज भी यहाँ जीवित है. यह नृत्य कला केवल मनोरंजन का साधन नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और धर्म का अभिन्न हिस्सा है. ओडिसी का इतिहास और इसकी अनूठी विशेषताएं इसे न केवल ओडिशा, बल्कि पूरे भारत में एक महत्वपूर्ण स्थान देती है
ओडिसी नृत्य का इतिहास लगभग 2,000 साल पुराना है. यह नृत्य कला प्राचीन मंदिरों की दीवारों पर उकेरे गए चित्रों और शिल्पकला में दिखाई देती है. इस नृत्य का विकास मुख्य रूप से मंदिरों में पुजारियों द्वारा किया गया है, जहाँ इसे धार्मिक अनुष्ठानों के दौरान प्रस्तुत किया जाता था. ओडिसी नृत्य अपनी कला को संजोए रखने के लिए वर्षों की मेहनत और प्रशिक्षण करते हैं. यह नृत्य शास्त्र, संगीत और पूजा के तत्वों का समावेश करता है. इस नृत्य को पहले ‘मोहिनी अट्टम’ के नाम से जाना जाता था.
ओडिसी नृत्य में विशेष मुद्राओं का प्रयोग होता है, जो भावनाओं और कथानकों को व्यक्त करने में सहायक होती है. नर्तकों की पारंपरिक पोशाक भव्य होती है, जिसमें साड़ी और विशेष आभूषण शामिल होते हैं. इस नृत्य का संगीत भी इसकी खूबसूरती को बढ़ावा देता है. इसमें शास्त्रीय संगीत का विशेष स्थान है, जो नृत्य के साथ तालमेल बिठाता है. ओडिसी नृत्य में भावनाओं का विशेष ध्यान रखा जाता है, जिसे ‘अभिनय’ कहा जाता है. नर्तक अपनी भावनाओं के माध्यम से कथा को जीवंत करते हैं.
ओडिशा में कई नृत्य विद्यालय और अकादमियां हैं, जहाँ युवा नर्तकों को प्रशिक्षित किया जाता है. यह नृत्य विद्यालय न केवल ओडिसी के तकनीकी पहलुओं को सिखाते हैं, बल्कि नर्तकों को इसके सांस्कृतिक महत्व के बारे में भी जागरूक करते हैं. हर साल ओडिशा में ओडिसी नृत्य महोत्सव का आयोजन किया जाता है. यह महोत्सव स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर के नर्तकों को एक मंच प्रदान करता है, जहाँ वह अपने कौशल का प्रदर्शन कर सकते हैं.
ओडिसी नृत्य को संरक्षित करने और बढ़ावा देने के लिए कई संगठनों और सरकार की पहलें चल रही हैं. ओडिशा सरकार ने विभिन्न योजनाएं बनाई है, ताकि इस नृत्य कला को नई पीढ़ियों तक पहुँचाया जा सके. यह नृत्य केवल एक नृत्य कला नहीं है, बल्कि ओडिशा और भारत की सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है. यह नृत्य भारतीय संस्कृति की गहराई और विविधता को दर्शाता है और इसे आगे बढ़ाने में सभी को योगदान देना चाहिए.