India: पिछले कुछ सालों में डॉलर की कीमत में लगातार इज़ाफा और भारतीय रुपए की गिरती हुई वैल्यू चर्चा का बड़ा विषय बन चुकी है. 10 साल पहले जब नरेंद्र मोदी की अगुआई में बीजेपी सरकार सत्ता में आई, उस समय डॉलर की कीमत करीब ₹60 के आसपास थी. लेकिन आज यह ₹86.40 तक पहुंच चुकी है. विशेषज्ञ मानते हैं कि आने वाले वक्त में यह सिलसिला ₹100 तक भी जा सकता है.
डॉलर की बढ़ती कीमत का कारण क्या है?
डॉलर की डिमांड बढ़ने के पीछे सबसे बड़ा कारण है वैश्विक निवेशकों का अमेरिका की ओर रुख करना. डोनाल्ड ट्रंप की “मेक अमेरिका ग्रेट अगेन” (MAGA) पॉलिसी ने अमेरिका में निवेश को बढ़ावा दिया. उन्होंने चाइनीज़ प्रोडक्ट्स पर भारी टैरिफ लगाए और अमेरिकी बाज़ार को आकर्षक बनाया. इससे डॉलर की मांग में तेज़ी आई और इसका असर बाकी दुनिया की मुद्राओं पर पड़ा.
डॉलर की बढ़ती हुई कीमत का सीधा असर भारत जैसे देशों पर पड़ता है. भारत अपने तेल और कई अन्य ज़रूरी सामानों की खरीदारी डॉलर में करता है. जब रुपए की वैल्यू गिरती है, तो इन्हें खरीदने का खर्च और बढ़ जाता है. और इसका असर हर आम आदमी की जेब पर पड़ता है. महंगाई बढ़ती है, खाने-पीने की चीजें, ट्रांसपोर्ट, दवाइयां और अन्य ज़रूरी सामान महंगे हो जाते हैं.
लेकिन समस्या यहीं खत्म नहीं होती. सरकार चाहें तो रुपए की गिरावट को काफी हद तक रोक सकती है. इसके लिए, भारत को विदेशी निवेशकों के लिए आकर्षक बनाना होगा और हमें अपने प्रोडक्ट्स का एक्सपोर्ट बढ़ाना होगा और इंपोर्ट कम करना होगा. अगर यह सिलसिला इसी तरह जारी रहा तो आने वाले दिनों में महंगाई का गहरा असर मिडिल क्लास पर पड़ेगा. समाज में असमानता और तनाव बढ़ सकता है. इसका हल गुणवत्ता वाले उत्पादों का निर्यात बढ़ाने, विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने और बिज़नेस के लिए अनुकूल माहौल बनाने में है.
रुपए की गिरती हुई वैल्यू न सिर्फ आर्थिक बल्कि सामाजिक मुद्दा भी है. इसमें बेहतरी लाने के लिए सरकार, उद्योग और आम जनता को मिलकर कदम उठाने होंगे. वरना वह दिन दूर नहीं जब हमें इस आर्थिक संकट का बड़ा खामियाज़ा भुगतना पड़ेगा.