Africa: रवांडा, मध्य पूर्व आफ्रिका का एक छोटा सा देश है. वैसे तो इसे आफ्रिका का सिंगापुर कहा जाता है, लेकिन लगभग 3 दशक पहले यही रवांडा दुनिया भर में एक बदनाम देश के नाम से जाना जाता था. क्यूंकि यह वही देश था जहाँ 1994 में 8 लाख लोग कीड़े मकौड़े की तरह मार दिए गए थे. रवांडा नरसंहार, तुत्सी और हुतू समुदाय के बीच एक भयंकर जातीय संघर्ष था.
आफ्रिका महाद्वीप में दुनिया भर के सबसे ज़्यादा ट्राइब के कबीले पाए जाते हैं. आंकड़े के अनुसार पूरे आफ्रिका में लगभग 3000 कबीले आबाद हैं, और सबका रहन सहन, खाना पीना सब बिलकुल एक दूसरे से अलग है. इन्हीं में से रवांडा में 2 कबीले आबाद थे हुतू और तुत्सी. हुतू जो की 85% थे और खेती किसानी करते थे, वहीं दूसरी तरफ तुत्सी जो केवल 15% थे यह मवेशी पालन और बिज़नेस किया करते थे. तुत्सी कबीले के लोग हुतू से संख्या में कम होने के बवजूद आर्थिक और राजनैतिक तरीके से हुतू कबीले से काफी मज़बूत थे.
रवांडा की आज़ादी से पहले तुत्सी के लोग ही देश पर शासन कर रहे थे. 1962 में रवांडा बेल्जियम से आज़ाद हुआ था लेकिन आज़ादी से पहले हुतू और तुत्सी दोनों कबीले एक दूसरे को पसंद नहीं करते थे. हुतू का कहना था हम लोग तुत्सी कबीले की संख्या के माध्यम से अधिक है, लेकिन गरीब और सत्ता से दूर हैं. तुत्सी की संख्या हमसे कम होने के बावजूद खुशहाल हैं और साथ ही हम पर राज भी करते हैं. हुतू ने बेल्जियम से साफ़ कह दिया था हम इस देश में जब 85% हैं तो सत्ता के सही दावेदार हमलोग होने चाहिए और सत्ता हमे ही मिलनी चाहिए.
रवांडा की आज़ादी मिलने के बाद हुतू को उनकी इच्छा अनुसार सत्ता सौंप दी जाती है. हुतू कबीले के लोगों के पास सत्ता आते ही उन लोगों ने सालों से भरी खुन्नस की वजह से तुत्सी कबीले के लोगों से बदला लेना शुरू कर दिया था. उस दौरान हजारों तुत्सी मारे गए थे और बड़ी संख्या में लोग अपनी जान बचाने के लिए पड़ोसी देश जैसे कि युगांडा, तंज़ानिया और बुरुंडी में पलायन करने के लिए चले गए, और जो तुत्सी रवांडा में रह गए थे वह वही संघर्ष करते रहे.
1990 में युगांडा में रह रहे तुत्सी लोगों ने हुतू कबीले को सबक सिखाने का फैसला किया. और इसके लिए उन्होंने एक चरमपंती गुड बनाया जिसका नाम रवांडन पेट्रियोटिक फ्रंट (RPF) रखा और इस तरह इन लोगों ने मिलिट्री ट्रेनिंग और हथियार हासिल करके रवांडा पर हमला करना शुरू कर दिया था. 1920 से 1993 के बीच RPF ने रवांडा की सरकारी आर्मी के साथ बहुत संगर्ष किया इस दौरान दोनों कबीलों के कई सारे लोग मारे गए.
अंतर्राष्ट्रीय दबाव के चलते 4 अगस्त 1993 में रवांडा की सरकार और RPF के बीच तंज़ानिया में एक समझौता होता है जिसे अरुषा अकॉर्ड कहा जाता है. लेकिन ये सिर्फ एक कागज़ी समझौता बन कर रह जाता है. रवांडा की राजधानी किगाली के बाहर 6 अप्रैल 1994 को रवांडा के राष्ट्रपति जुवेनल हेबिअरिमाना और बुरुंडी के राष्ट्रपति सिप्रेन का विमान एक हमले में गिरा था, और दोनों की मौत हो गई थी. इस घटना के एक बाद हुतू समुदाय ने तुत्सी समुदाय के खिलाफ हिंसा की लहर शुरू की.
यह नरसंहार 7 अप्रैल 1944 को शुरू हुआ था, लगभग 100 दिनों तक यह जारी रहा, और इस दौरान तुत्सी कबीले के करीब 8 लाख लोगों को मार दिया गया. यहाँ तक की कुछ हुतू ने अपनी तुत्सी पत्नियों और पड़ोसियों को भी मार दिया. हुतू ने इस नरसंहार को और व्यापक बनाने के लिए एक रेडियो स्टेशन शुरू किया जिसका नाम RTLM रखा था. इस रेडियो के माध्यम से आम हुतू के दिमाग में तुत्सी समुदाय के खिलाफ खूब ज़हर घोला गया, और इस नरसंहार पर कोई भी देश साथ नहीं दे रहा था.