Saturday, March 15, 2025
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सुप्रीम कोर्ट ने यूपी मदरसा एक्ट को दी मान्यता, जानिये क्यों था यह मामला विवादों में

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद अब यह साफ हो गया है कि मदरसों की शिक्षा व्यवस्था के लिए कानूनी सुरक्षा मिल गई है. यह फैसला न केवल छात्रों के लिए बल्कि मदरसा शिक्षा व्यवस्था को संचालित करने वाले संस्थानों के लिए भी बड़ी राहत लेकर आया है

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Abida Sadaf
Abida Sadafhttp://globalboundary.in
आबिदा सदफ बीते 4 वर्षों से मीडिया से जुड़ी रही हैं। इन्किलाब अखबार से अपने पत्रकारिता जीवन की शुरूआत की थी। आबिदा सदफ मूल रूप से उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जनपद की रहने वाली हैं.

Uttar Pradesh: सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश मदरसा बोर्ड एक्ट 2004 को संवैधानिक मान्यता देते हुए इसे वैध करार दिया है. इस फैसले से राज्य के लगभग 17 लाख मदरसा छात्रों को राहत मिली है. इससे मदरसों की शिक्षा व्यवस्था में अनिश्चितता का खत्म होना तय हो गया है और उनकी पढ़ाई की दिशा अब स्पष्ट हो गई है.

उत्तर प्रदेश में मदरसा शिक्षा को सुव्यवस्थित करने के लिए 2004 में यूपी मदरसा बोर्ड एक्ट को लागू किया गया था. इस कानून के तहत राज्य में मदरसों के संचालन और शिक्षा प्रणाली को एक संरचित रूप में लाने का उद्देश्य था. यूपी मदरसा बोर्ड की स्थापना की गई थी, जिसका मुख्य कार्य राज्य में सभी मदरसों को एक ही दायरे में लाकर उनका प्रबंधन करना था. इस कानून के तहत उत्तर प्रदेश के मदरसों को धार्मिक और सांस्कृतिक शिक्षा के साथ साथ आधुनिक शिक्षा देने का भी प्रावधान है. इसके अलावा, इस कानून में पारंपरिक इस्लामी शिक्षा जैसे अरबी, उर्दू, फ़ारसी, तिब्बत और दर्शनशास्त्र को भी विस्तार से परिभाषित किया गया है.

उत्तर प्रदेश में करीब 25,000 मदरसे हैं, जिनमें से लगभग 16,000 मदरसे यूपी मदरसा बोर्ड से मान्यता प्राप्त हैं. इन मदरसों में हर साल लाखों बच्चे पढ़ाई करते हैं. मदरसा बोर्ड उच्च शिक्षा स्तर पर ‘कामिल’ नामक डिग्री प्रदान करता है, जो अंडर ग्रेजुएट स्तर की होती है. वहीं ‘फ़ाज़िल’ नामक डिग्री स्नातकोत्तर स्तर की होती है. इसके अलावा ‘कारी’ नामक डिप्लोमा भी प्रदान किया जाता है, जो कुरान के अध्ययन और शिक्षण में विशेषज्ञता को प्रमाणित करता है.

मदरसा बोर्ड एक्ट को लेकर विवाद तब शुरू हुआ जब एक व्यक्ति अंशुमान सिंह राठौड़ ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में इस कानून संवैधानिक वैधता को चुनौती दी. उनका कहना था कि यह कानून भारतीय संविधान के धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के खिलाफ है. उन्होंने तर्क दिया कि राज्य सरकार को किसी विशेष धर्म के लिए शिक्षा बोर्ड बनाने का अधिकार नहीं है और मदरसा शिक्षा को सामान्य शिक्षा व्यवस्था में शामिल किया जाना चाहिए. हाई कोर्ट ने 22 मार्च को इस पर फैसला सुनाया था. कोर्ट ने यूपी मदरसा बोर्ड एक्ट 2004 को ‘असंवैधानिक’ घोषित कर दिया था और राज्य सरकार को आदेश दिया कि मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों को सामान्य स्कूल शिक्षा व्यवस्था में शामिल किया जाए. और यह भी कहा कि धार्मिक शिक्षा के लिए अलग बोर्ड नहीं बनाया जा सकता.

हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की. सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली सुप्रीम कोर्ट की तीन जस्टिस की बेंच ने कहा कि यह सही नहीं था. कोर्ट ने मामले की सुनवाई की और इस पर रोक लगाई. अंतिम फैसला सुनाते हुए मदरसा एक्ट को संवैधानिक घोषित किया है. अतत: सुप्रीम कोर्ट ने यूपी मदरसा बोर्ड एक्ट 2004 को संवैधानिक वैधता प्रदान की और इसे संविधान के अनुरूप बताया. सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि राज्य सरकार को मदरसों को नियमित करने का अधिकार है, बशर्ते यह संवैधानिक अधिकारों के भीतर हो.

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद अब यह साफ हो गया है कि मदरसों की शिक्षा व्यवस्था के लिए कानूनी सुरक्षा मिल गई है. यह फैसला न केवल छात्रों के लिए बल्कि मदरसा शिक्षा व्यवस्था को संचालित करने वाले संस्थानों के लिए भी बड़ी राहत लेकर आया है. अब मदरसे अपनी शिक्षा को केवल पारंपरिक धार्मिक शिक्षा तक सीमित नहीं रखेंगे, बल्कि आधुनिक शिक्षा में भी योगदान देंगे. मदरसा बोर्ड द्वारा दी जाने वाली डिग्रियां अब पूरी तरह से कानूनी रूप से मान्य होंगी और मदरसा छात्रों को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त शिक्षा प्राप्त होगी.

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    आबिदा सदफ बीते 4 वर्षों से मीडिया से जुड़ी रही हैं। इन्किलाब अखबार से अपने पत्रकारिता जीवन की शुरूआत की थी। आबिदा सदफ मूल रूप से उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जनपद की रहने वाली हैं.

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