Delhi: सुप्रीम कोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे के मामले में एतिहासिक फैसला सुनाया है. कोर्ट ने 1967 में दिए गए अपने पुराने फैसले को खारिज कर दिया और इस मामले पर नए सिरे से विचार करने के लिए तीन जजों की एक बेच गठित की है. इस बेंच को तय करना होगा कि क्या एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान मिलना चाहिए या नहीं.
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्थापना 1857 में सर सैयद अहमद खान ने “अलीगढ़ मुस्लिम कॉलेज” के रूप में की थी, जिसका मुख्य उद्देश्य भारतीय मुसलमानों के शैक्षिक विकास को बढ़ावा देना था. 1920 में इस कॉलेज को यूनिवर्सिटी का दर्जा मिला और इसका नाम बदलकर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी रख दिया गया. हालांकि, इस यूनिवर्सिटी से जुड़ा एक बड़ा क़ानूनी विवाद सामने आया, जब 1951 और 1965 में AMU अधिनियम में कुछ संशोधन किए गए.
1967 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी एक केंद्रीय यूनिवर्सिटी है और इसे अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा नहीं दिया जा सकता. कोर्ट ने यह तर्क दिया था कि एएमयू की स्थापना मुसलमानों द्वारा की गई थी, लेकिन इसे एक केंद्रीय अधिनियम के तहत यूनिवर्सिटी का दर्जा प्राप्त हुआ था, जो इसे अल्पसंख्यक संस्थान नहीं बनाता. और यह भी कहा था कि अन्य समुदायों को भी इस यूनिवर्सिटी में बराबरी का अधिकार है. यह फैसला एएमयू के लिए एक बड़ा झटका था, क्योंकि इसके बाद यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक समुदायों के लिए विशेष अधिकार नहीं मिल पाए थे. इसके बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2005 में AMU अधिनियम में किए गए कुछ संशोधनों को खारिज कर दिया था, जिससे यह विवाद और भी जटिल हो गया.
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने इस मामले में महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि अनुच्छेद 30ए के तहत अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थानों के लिए मानदंडों का निर्धारण किया जाएगा. और यह भी कहा कि एक धार्मिक अल्पसंख्यकों को अपनी शिक्षा के अधिकार की रक्षा का अधिकार है. उन्हें अपने संस्थान को संचालित करने और अपने समुदाय के शिक्षा हितों की रक्षा करने का अधिकार है.
इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा ने एकमत से फैसला दिया. वहीं, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने इस फैसले से असहमत होते हुए डिसेंट नोट दिया. अब यह मामला नई बेंच के सामने आएगा, जो AMU को अल्पसंख्यक दर्जा देने के क़ानूनी मानदंडो पर विचार करेगी.
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के लिए एक अहम मोड़ है. इससे न केवल यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक दर्जा देने के मामले में नया रास्ता खुलेगा, बल्कि यह पूरे देश में अल्पसंख्यक अधिकारों और शैक्षिक संस्थानों के दर्जे के निर्धारण पर एक महत्वपूर्ण उदाहरण बनेगा. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि तीन जजों की बेंच इस मामले पर क्या निर्णय देती है.