Ajmer: अजमेर की प्रसिद्ध दरगाह में मंदिर होने का दावा सामने आया है. इस मामले में अजमेर दरगाह के दीवान के उत्तराधिकारी, सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती का बयान सामने आया. उन्होंने कहा कि “मैं न्यायालय की प्रक्रिया पर टिप्पणी नहीं करूंगा, लेकिन यह प्रॉपर्टी जो हाल में बन रही है कि हर दरगाह और मस्जिद में मंदिर होने का दावा किया जा रहा है, वह समाज के लिए ठीक नहीं है. इस प्रकार के वाद समाज में विवाद उत्पन्न करने वाले होते हैं”.
दरअसल, संभल की शाही मस्जिद के बाद हाल ही में अजमेर की दरगाह को लेकर यह दावा किया गया है कि यहां पहले एक शिव मंदिर था, जिसे तोड़कर दरगाह का निर्माण किया गया. इस मामले में हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने 25 सितंबर को अजमेर के सिविल न्यायालय में वाद दायर किया था. उन्होंने दावा किया था कि दरगाह में बने 800 साल से अधिक समय हो चुका है, लेकिन इससे पहले यहां एक शिव मंदिर था और उसे तोड़कर दरगाह का निर्माण हुआ.
दरगाह में लगाए गए इस वाद को लेकर चिश्ती ने कहा कि इसे मज़बूती से लड़ा जाएगा और जो लोग सस्ती लोकप्रियता के लिए इस तरह के वाद कर रहे हैं, उनका उद्देश्य गलत है. उन्होंने यह भी बताया कि दरगाह की स्थापना 1236 में हुई थी, जब ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का निधन हुआ था. तब से ही दरगाह में लोगों की आस्था जुड़ी हुई है, और यह भी बताया कि अंग्रेजी हुकूमत के दौरान कई राजाओं ने यहां हाज़िरी दी थी और आज भी देश-विदेश के लोग यहां आते हैं.
इस मामले में AIMIM के प्रवक्ता काशिफ जुबैरी ने कहा कि इस तरह के मामले देश के आपसी भाईचारे को कमजोर करेंगे. उन्होंने कहा कि इस तरह की याचिकाओं का पेंडोरा बॉक्स अब खुल चुका है और वर्शिप एक्ट 1991 का उल्लंघन हो रहा है. बाबरी मस्जिद और अयोध्या मामले के बाद अब ऐसे मामलों की संख्या बढ़ रही है, जो किसी विशेष धर्म को टारगेट करने के उद्देश्य से राजनीति से प्रेरित हैं. उनका कहना था कि इस तरह के मामलों को गंभीरता से सुप्रीम कोर्ट को देखना चाहिए.
विष्णु गुप्ता ने कहा कि हर मंदिर के पास एक कुंड होता है और वह कुंड भी दरगाह के पास मौजूद है. इसके अलावा, पास में एक संस्कृत स्कूल भी है, जो इस दावे को समर्थन प्रदान करता है. उन्होंने 1911 में प्रकाशित “अजमेर हिस्टोरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव” किताब का हवाला दिया, जिसमें इस मंदिर के बारे में जानकारी दी गई है. यह किताब एक जज ने लिखी थी जिनका नाम दीवान बहादुर हरविलास शारदा था. उन्होंने इस किताब के अंदर अजमेर और उससे जुड़े सारे एतिहासिक जगहों के बारे में लिखा है. किताब के पेज नंबर 87 पर ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के दरगाह के बारे में भी तफसील से लिखा गया है.
इस किताब के चैप्टर 8 नंबर के पेज नंबर 96 और 97 पर जो बात लिखी है, उन्हीं बातों को लेकर विष्णु गुप्ता ने महादेव के मन्दिर होने का दावा किया है. पेज नंबर 96 पर लिखा है कि, बुलंद दरवाज़ा और इनर कोर्टयार्ड के बीच का प्रागंड यह हिन्दू इमारतों कोटन कोट मन्दिर के तहखाने हैं, और उनमें कई सारे कमरे हैं ऐसा मालूम होता है कि पहले के मुस्लिम हुक्मरानों के ज़माने में पुराने पुराने हिन्दू मंदिरों की की जगहों पर दरगाह का पूरा हिस्सा या कुछ हिस्सा बदल कर पहले से मौजूद ढांचे में शामिल करके बनाया गया था.
पेज नंबर 97 में लिखा है कि परंपरा बताते है कि तहखाने के अंदर महादेव की इमेज है जिस पर एक ब्राह्मण परिवार हर रोज़ संदल चढ़ाया करता था जिसको अब भी दरगाह की तरफ से इस परंपरा को बरकरार रखा गया है. यह दोनों पेज पर लिखी बात को लेकर दरगाह के तहखाने में मन्दिर होने की बात कही जा रही है.
अजमेर दरगाह में मंदिर होने का दावा एक संवेदनशील और विवादास्पद मामला बन चुका है. इसे लेकर विभिन्न पक्षों से प्रतिक्रिया आ रही है, जिसमें धार्मिक और राजनीतिक दृष्टिकोण भी शामिल हैं. इस मामले में न्यायालय की प्रक्रिया का पालन किया जाएगा और इसकी अगली सुनवाई 20 दिसंबर को होगी. इस दौरान यह देखा जाएगा कि इस मामले में और क्या कदम उठाए जाते हैं और इसके परिणाम क्या निकलते हैं.