मोहम्मद ज़ुबैर, ऑल्ट न्यूज़ के सह संस्थापक और एक प्रमुख फैक्ट-चेकिंग पत्रकार, हाल ही में एक बार फिर सुर्कियों में हैं. ज़ुबैर का नाम तब चर्चा में आया जब गाज़ियाबाद पुलिस ने उनके खिलाफ एक FIR दर्ज की, जिसमें भारतीय दंड संहिता (IPS) की धारा 152 जोड़ी गई. इस घटना के बाद, सोशल मीडिया पर #Istandwithzubair का ट्रेंड चल रहा है और लाखों लोग उनके समर्थन में आ गए हैं.
मोहम्मद ज़ुबैर भारतीय पत्रकारिता के एक प्रमुख नाम, खासकर फैक्ट-चेकिंग के क्षेत्र में अपनी पहचान बना चुके हैं. वह ऑल्ट न्यूज़ के सह संस्थापक हैं, जो एक प्रमुख वेबसाइट है, जो भारतीय मीडिया में फैलाई जा रही गलत जानकारी, नफरत फ़ैलाने वाली सामग्री और झूटे दावों को उजागर करने का काम करती है. ज़ुबैर का मानना है कि पत्रकारिता का सबसे महत्वपूर्ण कर्तव्य सच्चाई की खोज करना और समाज में सही जानकारी फैलाना है. यह सॉफ्टवेयर इंजीनियर भी थे.
मोहम्मद ज़ुबैर एक सशक्त और आत्मविश्वासी व्यक्ति हैं, जो अपनी बात कहने से कभी नहीं डरते. उन्होंने हमेशा सच को सामने लाने के लिए अपनी आवाज़ उठाई है, चाहे वह सत्ता के खिलाफ हो या समाज में फैल रही गलत सूचनाओं के खिलाफ. ज़ुबैर को पहले भी कई क़ानूनी समस्याओं का सामना पड़ा है. उन्होंने बहुत बार ऐसे झूटे भड़काऊ संदेशों का पर्दाफाश किया है, जो सोशल मीडिया पर फैल रहे थे. और उन्हें इसके कारण कई बार जेल जाना पड़ा.
8 अक्टूबर 2024 को गाज़ियाबाद में दर्ज की गई FIR में आरोप लगाया गया है कि मोहम्मद ज़ुबैर ने यति नरसिंहानंद सरस्वती ट्रस्ट की महासचिव उदिता त्यागी द्वारा की गई शिकायत के बाद विवादास्पद वीडियो क्लिप साझा किया था. आरोप है कि इस वीडियो ने भारत की एकता और अखंडता को खतरे में डाला है. यह FIR उन टिप्पणियों पर आधारित है, जो नरसिंहानंद ने अपनी सार्वजनिक भाषणों में दी थी, जिसमें नफरत और सांप्रदायिक हिंसा को बढ़ावा दिया गया था.
इलाहबाद हाई कोर्ट में मामले की सुनवाई हो रही है, और ज़ुबैर के खिलाफ लगाए आरोपों को लेकर गहरी चिंताएं जताई जा रही हैं. ज़ुबैर के साथ खड़ा होने के लिए ऑल्ट न्यूज़ ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स पर सावर्जनिक ब्यान जारी किया. उन्होंने कहा कि यह मामला साफ़ तौर पर दिखाता है कि कैसे राज्य मशीनरी का इस्तेमाल उन लोगों को डराने के लिए किया जा रहा है, जो नफरत और गलत सूचना को उजागर करने का काम कर रहे हैं.
मोहम्मद ज़ुबैर का मामला भारतीय समाज स्वतंत्र पत्रकारिता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के महत्व को रेखांकित करता है. ज़ुबैर और उनके जैसे पत्रकारों को लगातार कानूनी और राजनीतिक दबाव का सामना करना पड़ रहा है. इस मामले की अगली सुनवाई 5 दिसंबर को होने वाली है, और यह देखना होगा कि अदालत इस मामले में क्या निर्णय लेती है.