India: हाल ही में भारत में लोकसभा में एक अहम बिल पेश किया गया था, जिसका ताल्लुक एक देश, एक चुनाव के मुद्दे से है. यह बिल को 129वें संविधान बिल के तौर पर पेश किया गया. मंगलवार को इस बिल के लिए इलेक्ट्रानिक वोटिंग कराई गई.
एक देश, एक चुनाव बिल को 17 दिसंबर को लोकसभा में कानून मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने पेश किया था. विपक्षी दलों ने इस बिल का विरोध किया और इसे संविधान विरोधी बताया, जबकि सत्ता पक्ष ने इसका समर्थन किया. गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि इस बिल को जेपीसी (जॉइंट पार्लियामेंटरी कमिटी) में भेजना सही रहेगा. इसके बाद, कानून मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने भी इसे जेपीसी में भेजे जाने का समर्थन किया. जिसमें 269 सांसदों ने इसके पक्ष में वोट किया और 198 सासंदों ने इसके खिलाफ. हालाँकि, बिल की मंज़ूरी के लिए 362 वोट चाहिए थे.
एक देश, एक चुनाव क्या है?
एक देश एक चुनाव का मतलब है कि भारत की लोकसभा और कई राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाएं. साथ ही स्थानीय निकायों के चुनाव भी एक ही दिन या एक तय समय सीमा में कराए जाएं. वर्तमान में, भारत में मुख्तलिफ समय पर लोकसभा और विधानसभा चुनाव होते हैं, जिससे चुनावी खर्च, सुरक्षा इंतज़ाम और प्रशासनिक दबाव बढ़ जाते हैं. हालांकि, इस बिल को लोकसभा और राज्यसभा में पास कराना सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती होगी। क्योंकि लोकसभा में वर्तमान में एनडीए के पास दो तिहाई बहुमत नहीं है, जिससे इसे पारित करना मुश्किल हो सकता है.
एक देश, एक चुनाव के फायदे
एक साथ चुनाव होने से चुनाव आयोग का खर्च, सेक्योरिटी इंतजाम, प्रचार खर्च और अन्य प्रशासनिक खर्चों में बड़ी कमी हो सकती है. यदि कई चुनाव एक साथ होएँगे, तो देश में राजनीतिक स्थिरता बनी रहेगी. चुनावों की वजह से बार बार चुनावी प्रक्रिया का आयोजन न होगा, जिससे समय की बचत होगी और कामकाजी माहौल में सुधार होगा.
एक देश, एक चुनाव के नुकसान
भारत में मुख्तलिफ सियासी दलों और विचारधाराओं के दरमियान अलग अलग राय पाई जाती हैं. अगर कई चुनाव एक साथ होते हैं, तो कुछ छोटे दलों का प्रभाव कम हो सकता है और कुछ क्षेत्रों में एकतरफा सियासत का खतरा बढ़ सकता है. राज्य में विधानसभा चुनावों में स्थानीय मसले प्रमुख होते हैं. हर राज्य के अपने अपने मसले होते हैं, जिनकी अधिकता वहां की विधानसभा चुनावों में होती है. अगर तमाम चुनाव एक साथ होते हैं, तो इन स्थानीय मसलों को नज़रअंदाज़ किया जा सकता है.
मुस्लिम समाज के बहुत से मसले राज्य स्तर पर ज़्यादा प्रभावी हैं, जैसे कि धार्मिक आज़ादी, समान नागरिक संहिता और सामाजिक इंसाफ. अगर चुनाव एक साथ होते हैं, तो इन मसलों को नजरअंदाज किया जा सकता है, क्योंकि राष्ट्रीय चुनावों में अक्सर ऐसे बड़े मसले शामिल होते हैं जो मुस्लिम समाज के लिए इतने प्रासंगिक नहीं हो सकते.
एक देश एक चुनाव के अपने फायदे और नुकसान हैं. जहाँ यह चुनाव प्रक्रिया को आसान बनाने और खर्च कम करने में मदद कर सकता है, वहीं यह राजनीतिक असंतुलन और समुदायों को नज़रअंदाज़ करने का कारण बन सकता है. इसीलिए, यह, महत्वपूर्ण है कि इस प्रस्ताव को लागू करते समय सभी समुदायों के हितों को संतुलित करे.