Madhya Pradesh: भोपाल गैस त्रासदी को घटे हुए चार दशकों से ज़्यादा समय हो चुका है, लेकिन उसका असर आज भी लोगों की ज़िंदगी में महसूस होता है. यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री का ज़हरीला कचरा, जो अब तक शहर में खड़ा था, आख़िरकार 377 टन की मात्र में बुधवार रात को पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र में भेज दिया गया. यह कदम 1984 में हुए भयावह गैस रिसाव के बाद की जटिलता को हल करने की दिशा में एक अहम प्रयास माना जा रहा है.
ज़हरीला कचरा 12 सीलबंद कंटेनर ट्रकों में भोपाल से धार ज़िले के पीथमपुर के लिए भेजा गया. यह कचरा रात 9 बजे के करीब ट्रकों में लादा गया और बगैर रुके लगभग 250 km का सफर तय किया. ट्रकों के लिए एक ‘ग्रीन कॉरीडोर’ बनाया गया था, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई भी रुकावट न आए और कचरा तेज़ी से अपनी मंज़िल तक पहुंच जाए. इस पूरे ऑपरेशन को पूरा करने के लिए लगभग 100 मजदूरों ने 30 मिनट की शिफ्टों में काम किया.
कचरे की पैकिंग और लोडिंग के दौरान मजदूरों की पूरी सुरक्षा का ख्याल रखा गया. उनकी स्वास्थ्य जांच की गई और उन्हें हर आधे घंटे में आराम दिया गया. इस काम में कोई लापरवाही नहीं बरती गई, क्योंकि यह एक ऐसी स्थिति थी, जिसमें न सिर्फ मजदूरों की, बल्कि पूरे पर्यावरण की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी थी. पीथमपुर में इस कचरे का निपटान जलाने के ज़रिये किया जाएगा.
भोपाल गैस त्रासदी राहत एवं पुनर्वास विभाग के निदेशक स्वतंत्र कुमार सिंह ने कहा कि अगर सब कुछ ठीक रहा तो तीन महीने के अंदर कचरे को जलाया जा सकता है. लेकिन अगर किसी वजह से कोई रुकावट आ जाए तो यह काम नौ महीने तक खिंच सकता है. हालाँकि, स्थानीय लोग इस कचरे के निपटान के खिलाफ विरोध कर रहे हैं. कुछ कार्यकर्ताओं का दावा है कि 2015 में पीथमपुर में किए गए कचरे के परिक्षण में आसपास के गांवों की मिट्टी, भूमिगत जल और जल स्त्रोत प्रदूषित हो गए थे.
1984 की भोपाल गैस त्रासदी के बारे में बात करे, तो 2 दिसंबर की रात को जब यूनियन कार्बाइड से मिथाईल आइसोसाइनेट गैस का रिसाव हुआ, तो यह एक ऐसी त्रासदी बन गई जिसने भोपाल के लोगों की ज़िंदगी बदल दी. उस हादसे में 3000 से ज़्यादा लोग मारे गए थे और हज़ारों लोग अपंग हो गए थे.
फैक्ट्री में ज़हरीली गैस से होने वाली मौतों के मामलों के लिए फैक्ट्री के संचालक वॉरेन एंडरसन को मुख्य आरोपी बनाया गया था. हादसे के तुरंत बाद ही वह भारत छोड़कर अपने देश अमेरिका भाग गया था. यह घटना आज भी दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक आपदाओं में से एक मानी जाती है.
भोपाल गैस त्रासदी के 40 साल बाद, इस ज़हरीले कचरे को खत्म करने का यह कदम शहरवासियों और पूरे देश के लिए एक अहम मोड़ साबित हो सकता है. हालाँकि, इसका असर तब ही ज़ाहिर होगा जब कचरे का पूरी तरह से निपटान हो जाएगा और यह सुनिश्चित किया जाएगा कि पर्यावरण पर कोई और नकारात्मक प्रभाव न पड़े.