Gaza: 19 जनवरी को हमास और इज़रायल के बीच आखिरकार सीज़फायर पर सहमती बनी, जो करीब 15 महीने की लंबी लड़ाई के बाद हुआ. इस सीज़फायर के तहत हमास ने तीन इज़रायली महिला कैदियों को रिहा किया और उन्हें रेड क्रॉस के हवाले किया. इन कैदियों की चिकित्सा जांच की गई और इसके बाद, इन महिला कैदियों ने अपने परिवार से मुलाकात की. इस दौरान गाज़ा में लोगों की ख़ुशी साफ़ देखी जा रही थी, क्योंकि सीज़फायर के बाद उन्हें राहत की साँस मिली थी.
इज़रायल ने इसके बदले कुल 90 फलस्तीनी कैदियों को रिहा किया. इनमें अधिकतर महिलाएं और बच्चे थे. इन कैदियों को जेल से बाहर आते ही ख़ुशी और आभार के साथ देखा गया, और उन्होंने अल्लाह का शुक्र अदा किया. यह पहला कदम था जो अमेरिका, कतर और मिस्र की मध्यस्थता के कारण हुआ. हालांकि, इस सीज़फायर डील पर पहुंचने में करीब आठ महीने का वक्त लगा. इस बीच, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की धमकी का भी असर नज़र आ रहा है, जिसमें उन्होंने कहा था कि बंधकों को छोड़ा जाए, वरना मिडल ईस्ट के लिए जहन्नुम का दरवाज़ा खोला जाएगा.
यह सीज़फायर 441 दिन की लंबी लड़ाई के बाद आया है, और गाज़ा के लोग अब राहत की साँस ले रहे हैं. युद्ध के बाद गाज़ा में लोग अपने अपने घरों की ओर लौटने लगे, हालांकि उनके घर अब मलबे में तब्दील हो चुके थे. फिर भी, उनका हौसला देखकर यह साफ़ था कि वह फिर से अपनी ज़िंदगी शुरू करने के लिए तैयार हैं. हमास के लड़ाके गाज़ा की सड़कों पर गश्त करते हुए नज़र आए, और स्थानीय लोगों ने उनका हाथ हिलाकर स्वागत किया.
सीज़फायर के बाद इज़रायल में कोई जश्न नहीं था. यह स्पष्ट था कि इज़रायल की सेना हमास को नष्ट करने में नाकाम रही और बंधकों को सुरक्षित करने में भी विफल रही. यह इज़रायल के लिए शर्मनाक स्थिति थी, खासकर जब अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश की मदद के बावजूद इज़रायल की फ़ौज हमास के खिलाफ कोई ठोस सफलता हासिल नहीं कर पाई. कई इज़रायली मंत्रियों ने नेतनयाहू की सरकार से इस्तीफा दे दिया है, जिनमें इतामर बेन-गविर और बेज़ेलेल स्मोत्रिच हैं. इनका माना था कि जंग को जारी रखना चाहिए था, लेकिन दबाव के कारण नेतनयाहू को सीज़फायर स्वीकार करना पड़ा. इसके साथ ही इजरायल डिफेंस फोर्सेज के चीफ ऑफ स्टाफ लेफ्टिनेंट जनरल हर्जी हलेवी ने अपने इस्तीफे का ऐलान कर दिया.
वहीं गाज़ा ने जंगबंदी के बाद ख़ुशी का माहौल था. गाज़ा के लोग, जिन्होंने अपनी जान की प्रवाह किए बिना संघर्ष किया, अब उम्मीदों से भरे हुए थे. युद्ध के इस लंबे समय ने उन्हें टूटने नहीं दिया, बल्कि उनकी इम्दाद के लिए पूरी दुनिया ने हाथ बढ़ाए. जब जंगबंदी के बाद गाज़ा के पत्रकारों ने अपनी बुलेटप्रूफ जैकेट्स और हेल्मेट्स उतारे, तो उनकी ख़ुशी देखी जा सकती थी. उनके लिए यह एक बड़ी राहत थी क्योंकि उन्होंने जान जोखिम में डालकर दुनिया को इज़रायल के हमलों की सच्चाई बताई थी.
सीज़फायर के बाद गाज़ा में जंगबंदी की पहली सफलता के रूप में 600 ट्रक मानवितीय सहायता भेजे जाने का आदेश दिया गया है. इनमें से 50 ट्रक ईंधन लेकर गाज़ा पहुंचेंगे, जबकि 300 ट्रक नॉर्थ गाज़ा की ओर भेजे जाएंगे, जहां स्थिति काफी कठिन है. इधर, हमास के नेता अबू उबैदा ने अपनी स्पीच में इतिहास के कुछ बड़े उदाहरण दिए. उन्होंने मूसा अलैहिस्सलाम की मिसाल दी, जो फिरौन की फ़ौज से भागते हुए समुद्र में फंसे थे, और अल्लाह ने उनकी मदद की. इसके बाद उन्होंने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और उनके साथी अबू बकर सिद्दीक की हिजरत के वाकिये का ज़िक्र किया, जिसमें उन्होंने सब्र शुक्र का संदेश दिया.
यह पूरी घटना दुनिया को यह संदेश देती है कि अगर कोई ताकत, हिम्मत और जज़्बे के साथ खड़ा हो, तो दुनिया की सबसे ताकतवर सेनाओं को भी हराया जा सकता है. गाज़ा के लोग आज यह सिद्ध कर चुके हैं कि शांति और संघर्ष का रास्ता कठिन ज़रूर है, लेकिन संभव है.