India: वक्फ संशोधन विधेयक पर संसद की संयुक्त समिति ने भाजपा और उसके सहयोगियों के 14 संशोधनों को भारी बहुमत से मंज़ूरी दे दी, जबकि विपक्ष द्वारा प्रस्तावित 44 में से प्रत्येक को ख़ारिज कर दिया गया. यह बिल देश के लाखों मुसलमानों और विभिन्न संगठनों के लिए चिंता का विषय बन चुका है, क्योंकि विपक्ष इसे मुसलमानों के अधिकारों पर हमला मानता है.
वक्फ संशोधन विधेयक की चर्चा में विपक्षी दलों के आरोप हैं कि समिति ने अपनी प्रक्रिया को निष्पक्ष नहीं रखा. विपक्ष के अनुसार, समिति की अध्यक्ष ने विपक्ष के दृष्टिकोण को नज़रंदाज़ किया और भाजपा के पक्ष में प्रस्तावित स्न्शोधों को प्राथमिकता दी. समाजवादी पार्टी के सांसद मुहिबुल्लाह नदवी ने इसे देश और अल्पसंख्यक समुदाय के साथ मज़ाक बताया. इसके अलावा, समिति में विपक्ष के सदस्य लगातार यह आरोप लगा रहे हैं कि अध्यक्ष ने असहमति जताने वाले सदस्यों को बोलने का अवसर नहीं दिया और एकतरफा निर्णय लिया.
वक्फ संशोधन के प्रमुख बिंदु यह है कि इसके ज़रिए वक्फ संपत्तियों की निगरानी और नियंत्रण को सरकार के हाथों में मज़बूत किया जाएगा. सरकार का कहना है कि यह कदम पारदर्शिता और प्रबंधन में सुधार के लिए उठाया गया है, लेकिन विपक्ष और मुसलमानों के संगठनों का आरोप है कि यह विधेयक वक्फ संपत्तियों को सरकार के नियंत्रण में लेने कि ओर एक खतरनाक कदम हो सकता है.
विपक्षी दलों का कहना है कि वक्फ संपत्तियां मुसलमानों की धार्मिक और सामाजिक संपत्ति हैं और सरकार का हस्तक्षेप इसके अधिकारों का उल्लंघन कर सकता है. मुस्लिम संगठनों का मानना है कि इस संशोधन ने वक्फ संपत्तियों की लूट को बढ़ावा मिल सकता है. वक्फ संशोधन विधेयक पर 29 जनवरी को वोटिंग होने वाली है, जिसमें 14 संशोधनों को मंज़ूरी देने के पक्ष में वोट किया जाएगा. इसके बाद समिति की अंतिम रिपोर्ट 31 जनवरी तक पेश की जाएगी. और इसे 13 फरवरी को संसद में पेश किया जाएगा.
वक्फ संशोधन विधेयक पर विचार-विमर्श के दौरान संसदीय समिति ने पटना, कोलकाता और लखनऊ का दौरा किया, लेकिन विपक्ष का आरोप है कि इन यात्राओं के दौरान समिति ने मुख्य रूप से गैर-प्रासंगिक व्यक्तियों से बातचीत की और मुसलमानों के वास्तविक प्रतिनिधियों की आवाज़ को अनसुना किया. संसदीय समिति के इस रवैये से विपक्षी दलों में गुस्सा है. इस संदर्भ में, संसदीय समिति की अध्यक्ष जगदम्बिका पाल पर भी तानाशाही रवैया अपनाने का आरोप लगाया.
संविधान और अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा के लिए विपक्ष ने आम लोगों से आह्वान किया है. विपक्षी नेताओं का कहना है कि यह संशोधन विधेयक भारत की धर्मनिपेक्षता को कमज़ोर करने का प्रयास है और इससे अल्पसंख्यक समुदाय की धार्मिक स्वतंत्रता पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है. इसके अलावा, विपक्ष ने देशवासियों से अपील कि है कि वह गाँधी, नेहरु, अम्बेडकर और पटेल जैसे नेताओं के संघर्ष और विश्वास को बनाए रखें और इस बदलाव के खिलाफ खड़े हों.