1 जुलाई से नए आपराधिक कानून लागू होने वाले हैं। इन नए कानूनों को लेकर देश भर में हंगामा है।
कौन है 3 नए आपराधिक कानून?
- भारतीय न्यायिक संहिता (BNS) जिको इस से पहले भारतीय दंड संहिता (IPC) के नाम से जाना जाता था।
- भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNS) पूर्व में इस को CRPC के नाम से जाना जाता था।
- भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BS Act) जिसको पहले इंडियन एविडेंस एक्ट कहा जाता था।
ये तीनों कानून 1 जुलाई से लागू होने वाले हैं। मोदी सरकार ने 20 दिसंबर, 2023 को इन तीन कानूनों को उस समय संसद से पारित करवा लिया था, जब 141 विपक्षी सांसदों को पार्लियामेंट के दोनों सदनों से निलंबित कर दिया गया था।
116 पन्नों के एक पीडीऍफ़ में तीनों नए कानूनों को विस्तृत रूप से बताया गया है, जिस में कहा गया है कि
इन कानूनों के ज़रिए “Decolonisation” की दिशा में बढ़ने की कोशिश है, जबकि कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि मोदी सरकार द्वारा पारित किए गए तीनों कानून ब्रिटिश काल के रूलेट एक्ट की याद दिलाते हैं। जिस तरह रूलेट एक्ट में पुलिस को बहुत ज्यादा शक्तियाँ दी गई थीं, उसी प्रकार इन तीन कानूनों से पुलिस को अधिक सशक्त बनाया जा रहा है, जिसका दरुपयोग होने की आशंका बढ़ जाती है। पुलिस इन कानूनों का सहारा लेकर मन चाहे ढंग से आरोपियों को प्रताड़ित करेगी और कोई कुछ नहीं कर पाएगा क्योंकि पुलिस यह सब मोदी सरकार द्वारा लाए गए कानूनों के तहत करेगी।
इन तीन कानूनों के तहत पुलिस को अपार शक्ति दी गई है और अब किसी भी आरोपी को पुलिस की दया पर रहना होगा। इसलिए आशंका है कि अब रिश्वत का बाज़ार गर्म होगा।
अगर आप 116 पन्नों के इन नए कानूनों को पढ़ेंगे तो पाएंगे कि अंग्रेजों से मुक्ति के नाम पर भारतीयों को एक नए रूलेट एक्ट का पैकेज थमाया जा रहा है। जिसे पढ़ने के बाद समाज के पढ़े लिखे लोग जैसे कि, वकील और सामाजिक कार्यकर्ता आदि इस मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट तक ले गए हैं। और सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर इन तीन नए कानूनों को लागू होने से रोकने की गुहार लगाई है। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि ये कानून बिना किसी उचित बहस के पारित किए गए और ऐसी स्थिति में पारित किए गए जब विपक्षी दलों के 141 सदस्यों को संसद भवन से निष्कासित कर दिया गया था।
बता दें कि पहले की आपराधिक संहिता मानौत के उस उसूल पर काम करती थी कि भले ही दस दोषी छूट जाएं, लेकिन किसी एक भी निर्दोष को सजा नहीं दी जा सकती। जबकि इन नए कानूनों ने पूरी अवधारणा ही उलट दी है।