Australia: ऑस्ट्रेलिया में बढ़ते ऊंटों की संख्या चिंता का विषय बन गई है. आधिकारिक का कहना है कि ऊंटों की अधिकता से पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है, जैसे कि जल स्त्रोतों का स्थानीय वन्यजीवों के लिए खतरा. यह ऊंट ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ावा दे रहे हैं, क्यूंकि एक ऊंट साल भर में एक टन मीथेन उत्सर्जित करता है, जो कार्बन डाई ऑक्साइड के बराबर है.
ऑस्ट्रेलिया में ऊंटों का उपयोग पहली बार 1840 के दशक में शुरू हुआ था. उस समय, ऊंटों को मुख्य रूप से परिवहन और काम के लिए लाया गया था. भारत से लगभग 20 हज़ार ऊंट आयात किए गए थे. ऊंटों का उपयोग लंबी यात्रा, माल ढुलाई और कठिन क्षेत्रों में परिवहन के लिए किया जाता था, खासकर रेगिस्तानी इलाकों में. वह सूखे और गर्मी को सहन कर सकते हैं, जिससे वहाँ की कठिन जलवायु में उपयुक्त बनें. साथ ही ऑस्ट्रेलिया में इस्लाम फ़ैलाने का करण भी ऊंट बने थे. जब ऊंटों के साथ अरब और भारतीय मंसूबी ऑस्ट्रेलिया आए थे, तो वो अपने साथ अपनी धार्मिक प्रथाओं और संस्कृति को भी लाए थे. 20वीं सदी के बाद वहां मुस्लिम समुदाय का आकार बढ़ा. ऊंटों ने न केवल परिवहन में मदद की, बल्कि इस्लाम के साथ एक नई संस्कृति को भी लाए.
ऑस्ट्रेलिया में दुनिया में सबसे ज्यादा जंगली ऊंट पाए जाते हैं, जिनकी संख्या 10 लाख से अधिक है. ऊंटों का मारने का अभियान दक्षिण ऑस्ट्रेलिया के उत्तर पश्चिमी इलाके से शुरू हुआ था, जहां करीब 2300 आदिवासी लोग रहते थें. इस अभियान में जुटी सीमित ने कहा कि ऊंट पानी की खोज में दूर दराज़ के आदिवासी समुदायों को नुकसान पहुंचाते थे. और सूखे के कारण ऊंट प्यास से मरे जा रहे थे या एक दूसरे को रौंदकर भी मार रहे थे. जिससे वहाँ महत्वपूर्ण जल स्त्रोत और सांस्कृतिक स्थल दूषित हो रहे थे.
दक्षिण ऑस्ट्रेलिया में सूखे की वजह से पानी की काफी किल्लत हो गई हैं. इन ऊंटों के कारण पानी की कमी और स्थानीय लोगों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. अनुमान के अनुसार, ऊंटों की संख्या 12 लाख से अधिक है, जो सूखे वाले इलाकों में अधिक पानी पी जाते हैं. स्थानीय संग्ठन कहना है कि ऊंटों की वजह से पानी की कमी बढ़ रही है. लोग अपने घरों के आसपास पानी को स्टोर करने लगे हैं, लेकिन ऊंट इसे पी जाते हैं. इसके साथ ही ऊंट फेसिंग को भी नुक्सान पहुंचा रहे हैं, जिससे स्थानीय निवासियों को और दिक्कतें हो रही हैं. इस संकट से निपटने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है ताकि मानव जीवन और वन्यजीवों की रक्षा की जा सके.
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