Jharkhand: झारखंड, जो 2000 में बिहार राज्य से अलग होकर स्थापित हुआ, आज अपनी समर्द्ध खनिज संसाधनों के लिए जाना जाता है. झारखंड का शाब्दिक अर्थ वनों की भूमि है, लेकिन अब यह कोयला और लौह अयस्क जैसे खनिजों के लिए प्रमुख केंद्र बन गया है. राज्य में खनन और औधोगिक क्षेत्र तेज़ी से विकसित हो रहे हैं. यह संसाधन न केवल राज्य की अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाते है, बल्कि यहाँ के लोगों के लिए भी रोज़गार के अवसर प्रदान करते हैं.
झारखंड में कोयला खनन की शुरुआत 19वीं सदी से हुई थी. विशेष रूप से 1857 के आसपास ब्रिटिश राज के दौरान कोयला खनन का काम शुरू हुआ था. उस समय धनबाद और झरिया क्षेत्र में बड़े पैमाने पर कोयला खनन के लिए कंपनियों ने कदम उठाए थे. 20वीं सदी में कोयले की खनन ने तेज़ी पकड़ी और यह क्षेत्र भारत के कोयला उत्पादन का एक प्रमुख केंद्र बन गया 1970 के दशक में कोल इंडिया लिमिटेड की स्थापना के बाद कोयला खनन में और वृधि हुई.
झारखंड भारत के सबसे समर्द्ध खनिज क्षेत्रों में से एक है, जहाँ देश के कुल कोयला भंडार का 29% हिस्सा स्थित है. यहाँ कोयले का उपयोग मुख्य रूप से थर्मल पावर प्लांट में बिजली उत्पादन और स्टील निर्माण में किया जाता है. झारखंड के खनिज संसाधन, विशेषकर कोयला राज्य की अर्थव्यवस्था के लिए अहम आधार हैं, और यह विकास के नये रास्ते खोल रहे हैं. अब यह क्षेत्र भारत का सबसे बड़ा कोयला क्षेत्र माना जाता है. झारखंड में कोयले का निर्यात और आयात आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है.
कोयला एक प्राकृतिक खनिज है, लाखों वर्षों के भूगभ्रीय दबाव के बाद मृत पौधों और जानवरों से बनता है. झारखंड में कई महत्वपूर्ण कोयला क्षेत्र है, जिनमे झरिया, धनबाद, बोकरो और हज़ारीबाग शामिल हैं. विशेष रूप से झरिया को “कोयला राजधानी” कहा जाता है, क्योंकि झरिया भारत के सबसे बड़े कोयला उत्पादन क्षेत्रों में से एक है. हालाँकि, हज़ारीबाग भी कोयला उत्पादन का महत्वपूर्ण क्षेत्र माना जाता है, लेकिन इसकी पहचान झरिया की तरह प्रमुख नहीं है.
झारखंड में 2024 में कोयला उत्पादन में उल्लेखनीय वर्धि हई है, पिछले वर्ष की तुलना में उत्पादन में बढोत्तरी ने राज्य के आर्थिक विकास में योग्दान दिया है. 2023 में कोयला उत्पादन 156.483 मिलियन टन तक पहुंचा था, और 2024 में इसकी संभावित वृधि को देखते हुए यह क्षेत्र और भी महत्वपूर्ण बनता जा रहा है. हालाँकि कोयले की खदानों में होने वाली दुर्घटनाओं के कारण हर साल कई लोगों की मौत होती है. यह आंकड़े साल दर साल बदलते रहते हैं. राज्य सरकार और खनन कंपनियाँ सुरक्षा उपायों में सुधार के लिए प्रयास कर रही हैं, लेकिन समस्या अभी भी मौजूद है.