Gujarat: भारतीय पत्रकार राणा अय्यूब, अपनी बेबाक रिपोर्टिंग के लिए जानी जाती हैं. वह “गुजरात फाइल्स: एनाटॉमी ऑफ ए कवर अप” की लेखिका हैं, जो गुजरात दंगों और उसके बाद के घटनाक्रमों पर केंद्रित है. राणा अय्यूब ने पहले तहलका नामक खोजी पत्रिका की संपादक के रूप में काम किया, जहां उन्होंने धार्मिक हिंसा, राज्य द्वारा की गई न्यायेतर हत्याओं और उग्रवाद पर गहन रिपोर्टिंग की.
राणा अय्यूब का जन्म 1 जनवरी 1983 को मुंबई में हुआ था. उनके पिता मोहम्मद अय्यूब मुंबई की प्रसिद्ध पत्रिका ब्लिट्ज़ के लेखक और प्रगतिशील लेखक आंदोलन के सदस्य थे. मुंबई में 1992 में हुए दंगों के दौरान, राणा का परिवार उपनगर देवनार चला गया था, जहां उन्होंने अपने बचपन के अधिकतर दिन गुज़ारे थे. राणा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मुंबई में प्राप्त की थी. इसके बाद, उन्होंने जामिया मिलिया इस्लामिया से पत्रकारिता की पढ़ाई की. उनकीं शिक्षा ने उन्हें समाज के विभिन्न मुद्दों को समझने और उन पर लिखने के लिए प्रेरित किया.
राणा अय्यूब अब एक प्रमुख पत्रकार और लेखक हैं, उन्होंने समाज में जागरूकता फैलाने का काम किया है और वह पत्रकारिता के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण आवाज़ बन गई हैं. उनकी मेहनत और साहस ने उन्हें कई पुरूस्कार भी दिलाए हैं. उनका काम विशेष रूप से सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर केंद्रित होता है. राणा ने अपनी पत्रकारिता के माध्यम से कई संवेदनशील मुद्दों को उजागर किया है, जिनमें धार्मिक उन्माद, मानवाधिकार और महिलाओं के अधिकार शामिल हैं. उनके काम से यह स्पष्ट होता है कि पत्रकारिता केवल समाचार देना नहीं, बल्कि समाज के प्रति ज़िम्मेदारी निभाना भी है.
राणा अय्यूब ने 2002 के गुजरात दंगों से जुड़े संभावित कवर अप को उजागर करने के लिए एक लंबा स्टिंग ऑपरेशन शुरू किया था. इस प्रोजेक्ट के तहत, उन्होंने अपना नाम बदल कर मैथिलि त्यागी के रूप में पहचान बनाई थी और लगभग दस महीनें भेष बदलकर माया कोडनानी के साथ बिताए. माया कोडनानी उन्हें अपनी बेटी बना के रखे थी यहाँ तक राणा अय्यूब के बालों में तेल भी लगाती थी और उन्हें स्पेशली आम का अचार बना कर खिलाती थी. इस दौरान वह कई दफा पकड़ने जाने से भी बची है. यह ऑपरेशन का मुख्य उद्देश्य गुजरात के राजनेताओं और सरकारी अधिकारों से महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करना था. इसी पर उनकी एक किताब गुजरात फाइल्स के नाम से आधारित है.
राणा अय्यूब ने उस वक्त के मुख्य मंत्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाकात करके एक और खतरा मोल लोया था. तहलका के प्रबंधन ने राणा के द्वारा एकत्र किए गए देता पर आधारित कई कहानियों को प्रकाशित करने से इनकार कर दिया था. इसके बावजूद अय्यूब ने कई महीनों तक तहलका में काम किया, लेकिन 2013 में उन्होंने इस्तीफा देने का फैसला किया. अब अय्यूब स्वतंत्र रूप से पत्रकारिता कर रही हैं और अपने विचारों और रिपोर्टों के माध्यम से समाज को जागरूक करने का प्रयास कर रही हैं.