Delhi: हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा है कि अगर कोई व्यक्ति आरोपी है तो उसके घर को बिना निष्पक्ष सुनवाई के गिराया नहीं जा सकता. यह संविधान और कानून के खिलाफ है. कोर्ट ने इस पर सख्त निर्देश दिए हैं और आदेशों में बताया कि किसी भी प्रकार की मनमानी कार्रवाई नहीं की जा सकती.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि घर केवल एक संपत्ति नहीं होती, बल्कि यह परिवार की सुरक्षा और सामूहिक उम्मीद का प्रतीक है. ‘अपन घर हो, अपना आंगन हो, इस ख्वाब में हर कोई जीता है’. और ये भी स्पष्ट किया कि किसी भी अपराध के आरोपी या दोषी होने की स्थिति में उनके घर को ध्वस्त नहीं किया जा सकता, और यह किसी भी परिस्थिति में स्वीकार्य नहीं है.
अदालत ने बताया कि अगर किसी आरोपी के खिलाफ बुलडोजर एक्शन लिया जाता है, तो यह सामूहिक दंड जैसा होगा, जो संविधान में कहीं भी स्वीकृत नहीं है. इस तरह की कार्रवाई कानून के शासन के खिलाफ होगी और कार्यपालिका को किसी भी व्यक्ति के परिवार की सुरक्षा छीनने का कोई अधिकार नहीं हो सकता. सुप्रीम कोर्ट ने ज़ोर देकर कहा कि किसी भी आरोपी के खिलाफ कार्रवाई करने से पहले उसे निष्पक्ष सुनवाई का मौका देना ज़रूरी है.
सुप्रीम कोर्ट ने कही है मुख्य बातें
1) अगर किसी घर को गिराने का आदेश दिया जाता है, तो उस घर के मालिक को कम से कम 15 दिन पहले नोटिस दिया जाना चाहिए.
2) साथ ही, उस नोटिस को घर के बाहर चिपकाना भी ज़रूरी होगा.
3) नोटिस की तारीख, सुनवाई की तारीख आदि की जानकारी डिजिटल पोर्टल पर प्रदर्शित की जाएगी.
3) अधिकारियों को यह साबित करना होगा कि घर अवैध है और इसके ध्वस्तीकरण का कोई दूसरा तरीका नहीं है.
4) कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर किसी व्यक्ति का घर ध्वस्त किया जाता है, तो उसे वैकल्पिक आश्रम की व्यवस्था प्रदान की जानी चाहिए.
5) घर गिराने के आदेश में यह स्पष्ट करना होगा कि बुलडोजर एक्शन की आवश्यकता क्यों है.
6) अगर ध्वस्तीकरण का आदेश पारित किया जाता है, तो यह प्रक्रिया पूरी तरह से पारदर्शी होनी चाहिए.
7) ध्वस्तीकरण के दौरान पुलिस और अधिकारियों की मौजूदगी में वीडियो रिकॉर्डिंग की जाएगी, और रिपोर्ट पोर्टल पर सावर्जनिक की जाएगी.
8) केवल वही संरचनाएं गिराई जाएंगी, जो अनधिकृत पाई जाएं और जिनका निपटान नहीं किया जा सकता.
9) अगर अवैध तरीके से किसी संरचना को गिराया जाता है, तो अधिकारियों को हर्जाना देना होगा और उन्हें अवमानना की कार्रवाई का सामना करना होगा.
10) कलेक्टर और ज़िला मजिस्ट्रेट द्वारा इस संबंध में सूचित किया जएगा.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि आदेशों का पालन नहीं किया जाता, तो अधिकारियों पर अभियोजन और अवमानना की कार्रवाई की जाएगी. इस फैसले का मुख्य उद्देश्य नागरिकों में भय को समाप्त करना है. कोर्ट ने अनुच्छेद 142 के तहत निर्देश जारी करते हुए कहा है कि जहाँ भी ध्वस्तीकरण का आदेश दिया जाएगा, वहां लोगों को उस आदेश को चुनौती देने का मौका मिलना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय न केवल नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा करता है, बल्कि यह भी सुनिक्ष्चित करता है कि किसी के घर को गिराने का आदेश बिना उचित प्रक्रिया और सुनवाई के नहीं दिया जा सकता. कोर्ट का यह निर्णय उस समय महत्वपूर्ण है जब देश भर में बुलडोजर एक्शन की घटनाएं तेज़ी से बढ़ रही है.