Punjab: खालिस्तान एक प्रस्तावित राष्ट्रीय विचार है, जिसका उद्देश्य सिख समुदाय के लिए एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना है. यह विचार मुख्य रूप से पंजाब राज्य के क्षेत्र में अलग सिख राष्ट्र बनाने के लिए था, जिसे खालिस्तान कहा जाता है. खालिस्तान की मांग समय समय पर भारतीय राजनीति में एक विवादास्पद मुद्दा बनी रही है. इस विचार का ऐतिहासिक संदर्भ बहुत गहरा है और यह सिख समुदाय के इतिहास से जुड़ा हुआ है.
महाराजा रणजीत सिंह के नेतृत्व में पंजाब में एक विशाल सिख राज्य का गठन हुआ था. 1849 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी ने पंजाब को अपने कब्ज़े में ले लिया था. इसके बाद, सिखों का स्वराज का सपना अधूरा रह गया था. हालांकि, ब्रिटिश शासन के दौरान, सिखों को कुछ विशेष धार्मिक और राजनीतिक अधिकार दिए गए थे, लेकिन स्वतंत्रता के बाद भी सिखों को अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करना पड़ा.
1947 में भारत के विभाजन के दौरान पंजाब का एक हिस्सा भारत में और दूसरा हिस्सा पाकिस्तान में चला गया. इस दौर में सिख समुदाय के लोगों को हिंसा का सामना करना पड़ा और कई सिखों के मन में एक अलग राष्ट्र की कल्पना ने जन्म लिया. यह समय सिखों के लिए अत्यंत पीड़ादायक था, और इस दौरान खालिस्तान का विचार सिखों के बीच प्रसार में आया. 1970 और 1980 के दशक में, पंजाब में खालिस्तान की मांग ने एक नया मोड़ लिया. सिखों के बीच कुछ नेता और समूह थे, जिन्होंने एक अलग राष्ट्र की आवश्यकता की बात की. इस आन्दोलन के प्रमुख नेता थे जरनैल सिंह भिंडरांवाले, जो एक धार्मिक और राजनीतिक नेता थे. भिंडरांवाले ने खालिस्तान की स्थापना की मांग की और यह विचार तेज़ी से पंजाब के सिखों में फैलने लगा.
भारतीय सरकार ने 1984 ने ऑपरेशन ब्लू स्टार की योजना बनाई, जिसका उद्देश्य अमृतसर स्थित स्वर्ण मन्दिर में छिपे भिंडरांवाले और उनके समर्थकों को गिरफ्तार करना था. इस ऑपरेशन में जरनैल सिंह भिंडरांवाले के साथ साथ कई सिखों की मौत हुई. इसके बाद पंजाब में हिंसा का दौरा शुरू हो गया. सरकार ने पंजाब में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था बनाई और खालिस्तान आन्दोलन को समाप्त करने के लिए कड़े कदम उठाए. भिंडरांवाले की मृत्यु के बाद भी, यह आन्दोलन एक नई दिशा में बढ़ता गया.
खालिस्तान का विचार एक ऐसी विचारधारा है, जो सिख समुदाय की ऐतिहासिक और राजनितिक स्थिति से जुडी हुई है. इसके उभरने के कारण विविध हैं, जिनमें ब्रिटिश शासन, 1947 का विभाजन, 1984 का ऑपरेशन ब्लू स्टार और पंजाब में फैली हिंसा शामिल है. हालांकि, आज के समय में खालिस्तान का आन्दोलन बहुत कमज़ोर ही चुका है और भारतीय राजनीति में इसका बहुत कम प्रभाव रह गया है. फिर भी यह विचार अब भी कुछ स्थानों पर जीवित है, और यह भारतीय राजनीति का एक जटिल और संवेदनशील मुद्दा बना हुआ है. यह विचार सिखों की स्वतंत्रता की इच्छा और उनके अस्तित्व की पहचान से जुड़ा हुआ है, लेकिन इसके पीछे राजनीतिक और सामाजिक जटिलताएं बहुत गहरी हैं.