Maharashtra: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 के परिणामों ने राजनीति के कई बड़े नामों को चुनौती दी. इस चुनाव में महायुती की प्रचंड लहर के बीच AIMIM ने केवल एक सीट पर जीत हासिल की. पार्टी के प्रमुख नेता और पूर्व सांसद इम्तियाज़ जलील, जो कभी पत्रकारिता की दुनिया से राजनीति में आए थे, इस चुनाव में हार गए. इनके हारने की वजह से औरंगाबाद के बाद लोग बहुत मायूस है.
औरंगाबाद पूर्व सीट पर हुए कड़े मुकाबले में इम्तियाज़ जलील को बीजेपी के उम्मीदवार अतुल सावे से सिर्फ 1261 वोटों से हार मिली. इस सीट पर कुल 23 राउंड की काउंटिंग हुई, जिनमें मुकाबला कड़ा रहा और आखिरी समय में सावे ने जलील को शिकस्त दी. हार के बाद इम्तियाज़ जलील ने सोशल मीडिया पर अपनी भावनाओं का इज़हार करते हुए लिखा, “मेरे लिए यह हार किसी भी मायने में निराशाजनक नहीं है. मैंने अपनी पूरी मेहनत लगाई, लेकिन जो भी होता है, वह अल्लाह की मर्ज़ी होती है”. उन्होंने अपनी हार को अल्लाह के फैसले के रूप में स्वीकार किया और अपने समर्थकों का आभार व्यक्त किया.
इम्तियाज़ जलील की राजनीति में एंट्री एक दिलचस्प कहानी है. वह एक समय पत्रकारिता में थे और बाद में राजनीति में कदम रखा. 2019 के लोकसभा चुनावों में उन्होंने औरंगाबाद से AIMIM के टिकट पर चुनाव लड़ा और शिवसेना के बड़े नेता चन्द्रकांत खैरे को हराया था. यह उनकी पहली बड़ी राजनीतिक जीत थी और इसके बाद उन्हें एक नायक के तौर पर देखा जाने लगा. लेकिन विधानसभा चुनाव में उनकी किस्मत ने उनका साथ नहीं दिया और वह अपनी सीट हार गए. उन्होंने कहा कि चुनावी राजनीति में जीत और हार दोनों ही सामान्य हैं और उन्हें इस हार कोई पछतावा नहीं है.
जलील ने इस बार औरंगाबाद पूर्व सीट पर बीजेपी के वरिष्ठ नेता अतुल सावे के खिलाफ मैदान में कड़ा मुकबला किया. अतुल सावे ने पहले भी लगातार जीत रिकॉर्ड बनाए रखा था, और इस चुनाव में भी उन्होंने अपनी जीत ई हैट्रिक पूरी की. चुनाव के परिणामों के अनुसार, अतुल सावे को 93,274 वोट मिले, जबकि इम्तियाज़ जलील को 91,113 वोट मिले. वोटों के अंतर से यह स्पष्ट था कि जलील और सावे के बीच मुकाबला बेहद नज़दीकी था.
इस चुनाव में एक दिलचस्प मोड़ यह आया कि वोटों का बंटवारा अहम भूमिका निभा रहा था. कांग्रेस के उम्मीदवार लहू हनमंतराव शेवाले को तीसरी पोज़ीशन मिली और उन्हें 12,568 वोट मिले. इसके साथ ही, प्रकाश आंबेडकर की वंचित बहुजन आघाड़ी और समाजवादी पार्टी ने भी अपने उम्मीदवार मैदान में उतारे थे. वंचित बहुजन आघाड़ी को 6,507 वोट मिले, जबकि समाजवादी पार्टी को 5,943 वोट मिले. इन सबका असर वोटों के बंटवारे पर पड़ा और जलील की हार में यह फैक्टर अहम रहा.