हिंदुस्तान की तारीख का सबसे खतरनाक और यादगार प्लेन हाईजैक मामलों में से एक था एयर इंडिया की फ्लाईट की घटना IC 814 का हाईजैक, जो 1999 में हुआ था. इस घटना ने हिंदुस्तान को हिलाकर रख दिया था, पूरे मुल्क में खौफ और दहशत का माहौल पैदा कर दिया था. यह हाईजैक पूरे सात दिनों तक जारी रहा.
यह घटना 24 दिसंबर 1999 को नेपाल के त्रिभुवन इंटरनेशनल एयरपोर्ट से शुरू हुई, जब एयर इंडिया की फ्लाईट IC 814 दिल्ली के लिए टेक ऑफ करने के लिए तैयार थी. लेकिन टेक ऑफ के कुछ देर बाद ही प्लेन हाईजैक हो गया. फ्लाईट के अंदर पांच लोग थे, जिनमें से चार लोग पैसेंजर केबिन में और एक ने कॉकपिट में घुस कर पायलट देवी शरण के सर पर बंदूक तान ली थी.
हाईजैकर्स के कहने पर फ्लाइट का रूट बदल कर इसे पाकिस्तान के लाहौर की तरफ मोड़ दिया गया. हालांकि, कैप्टन देवी शरण ने हाईजैकर्स से बताया कि उनके पास इतनी ईंधन नहीं है कि वह लाहौर पहुँच सकें. कैप्टन ने पूरी कोशिश की कि फ्लाइट को हिंदुस्तानी सरहद के अंदर रखा जाए और इसे हिंदुस्तान में ही कहीं लैंड करवाया जाए. इसके बाद उन्होंने इमरजेंसी बटन दबा दिया, जिसकी वजह से ट्रैफिक कंट्रोल को यह जानकारी मिली गई.
कैप्टन देवी शरण हाईजैकर्स को राज़ी करने में कामियाब हो गए और उन्हें यकीन दिलाया कि फ्लाइट अमृतसर एयरपोर्ट पर उतरेगी. इसके बाद फ्लाइट अमृतसर एयरपोर्ट पर उतरी और वहां इसकी रिफ्यूलिंग की गई. इस पूरी प्रक्रिया की जानकारी भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को भी मिली.
अमृतसर एयरपोर्ट पर फ्लाइट लैंड करते समय हिंदुस्तानी सेक्योरिटी ने एक मंसूबा तैयार किया था कि किस तरह फ्लाइट और यात्रियों को हाईजैकर्स से सुरक्षित छुड़वाया जाए. यह कोशिश पंजाब पुलिस और स्नैपर शूटर की मदद से की जा रही थी, लेकिन दिल्ली से एनएसजी कमांडोज को भेजे जाने तक डिले करने की रणनीति अपनाई गई.
हाईजैकर्स को शक होने लगा क्योंकि रिफ्यूलिंग की प्रक्रिया काफी ज्यादा डिले हो रही थी. वह समझ गए थे कि उनके खिलाफ कोई साज़िश की जा रही है. हाईजैकर्स ने कैप्टन पर फ्लाइट को जल्द टेक ऑफ करने के लिए दबाव डालना शुरू कर दिया, जिससे फ्लाइट को दोबारा लाहौर की दिशा में टेक ऑफ करने पर मजबूर कर दिया. हालांकि, लाहौर एयरपोर्ट ने इसे लैंड करने की इजाज़त नहीं दी और फिर फ्लाइट दुबई की तरफ रवाना हो गई.
फ्लाइट 25 दिसंबर की रात को दुबई पहुंची, भारत और दुबई के प्रशासन से बात चीत हुई जिसमें दुबई प्रशासन ने उनकी मदद करने से इनकार कर दिया, और कहा हम सिर्फ ज़ख्मियों को उतरवा सकते हैं. इस दौरान एक यात्री, रूपीन क्ल्याल, को हाईजैकर्स ने चाकू मार दिया था, जिसकी वजह से वह शदीद ज़ख्मी हो गया और रात में उनकी मृत्यु हो गई. रूपीन की लाश और अन्य घायल यात्रियों को दुबई में उतारा गया.
फिर दुबई से फ्लाइट कंधार की दिशा में गई. 26 दिसंबर को फ्लाइट कंधार एयरपोर्ट पर उतरी, जहां तालिबान के लड़ाकों ने फ्लाइट को घेरे में ले लिया. इस वक्त भारतीय हुकूमत को यह जानकारी मिली कि फ्लाइट तालिबान के कंट्रोल में है. भारतीय अधिकारियों ने तालिबान से बातचीत के लिए कंधार जाने का फैसला किया.
27 दिसंबर को भारतीय विदेश मंत्रालय के जॉइंट सेक्रेटरी विवेक काजो और इंटेलिजेंस ब्यूरो के अधिकारी अजीत डोभाल अफगानिस्तान गए.तालिबान के साथ बातचीत शुरू हुई और हाईजैकरों ने अपनी मांगें रखी. उनकी तीन डिमांड थी, सज्जाद अफगानी की लाश, मौलाना मसूद अज़हर समेत 36 कैदियों की रिहाई, 20 करोड़ अमेरिकी डॉलर.
जब भारतीय हुकूमत ने इन मांगों को अस्वीकार कर दिया, तो हाईजैकर्स ने धमकी दी कि अगर उनकी मांगों को पूरा नहीं किया गया तो वह सभी यात्रियों को मार देंगे. अंत में, 29 दिसंबर को बातचीत में एक अहम मोड़ आया और भारत ने तीन अहम कैदियों को रिहा करने का फैसला किया. इनमें मौलाना मसूद अज़हर, मुश्ताक अहमद जरगर और अहमद उमर शेख शामिल थे. इन तीनों कैदियों के बदले में बाकी सभी यात्रियों को रिहा करने की बात हुई.
31 दिसंबर को भारत के विदेश मंत्री जसवंत सिंह कंधार पहुंचे और कैदियों का आदान-प्रदान किया. इसके बाद हाईजैकर्स समेत तीनों कैदी पाकिस्तान रवाना हो गए और भारतीय यात्रियों को फ्लाइट में बैठाकर भारत वापस लाया गया. फ्लाइट IC 814 1 जनवरी 2000 को हिंदुस्तानी भूमि पर सुरक्षित उतर गई. हिंदुस्तान पहुँचते ही हर कोई ख़ुशी से उछल पड़ा.