Friday, March 14, 2025
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डॉ. मनमोहन सिंह की भोली बिसरी यादें

डॉ. मनमोहन सिंह का व्यक्तित्व सरल, ईमानदार और समर्पित था. प्रधानमंत्री बनने से पहले उनके पास मारुति 800 कार थी, लेकिन जब वह प्रधानमंत्री बन गए, तो उन्हें BMW जैसी महंगी कार चलानी पड़ी, जो उन्हें ज़ाती तौर पर पसंद नहीं थी. वह मुल्क की सेवा के लिए पूरी तरह से समर्पित थे और उनके फैसले हमेशा राष्ट्रहित को ध्यान में रखते हुए होते थे.

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Iram Fatima
Iram Fatima
मेरा नाम इरम फातिमा है। मैं मूल रूप से लखनऊ की रहने वाली हूं और मैंने पत्रकारिता करियर दो साल पहले एक अखबार के साथ शुरू किया था और वर्तमान में पिछले कुछ महीनों से डिजिटल प्लेटफॉर्म पर सक्रिय हूं और ग्लोबल बाउंड्री में असिस्टेंट कंटेंट प्रोडूसर के रूप में काम कर रही हूं।

India: भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का 26 दिसंबर 2024 को दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में निधन हो गया. उनके निधन के बाद मुल्क भर में सोग की लहर दौड़ गई. 28 दिसंबर को राष्ट्रीय सोग दिवस के रूप में मनाया गया, और उन्हें दिल्ली के निगम बोध घाट पर आखिरी विदाई दी गई. डॉ. मनमोहन सिंह की ज़िंदगी मुल्क की सेवा में समर्पित रही, भारतीय राजनीति, अर्थव्यवस्था और समाज में उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा.

आइये उनकी ज़िंदगी के चंद अहम पहलुओं के बारे में जानते हैं-

डॉ. मनमोहन सिंह 1932 में वर्तमान पाकिस्तान के चकवाल ज़िले के गाह गांव में पैदा हुए थे. गाँव के लोग उन्हें प्यार से मोहना कहकर बुलाते थे. यह गाँव अब पाकिस्तान में हैं, और डॉ. मनमोहन सिंह ने अपनी शुरूआती 15 साल की जिंदगी यहीं गुज़ारी. 1947 में जब पाकिस्तान का विभाजन हुआ, तो उनका परिवार भारत आकर पंजाब में बस गया था, और वह शरणार्थी के रूप में अमृतसर में रहने लगे.

डॉ. मनमोहन सिंह की शुरुआती शिक्षा गाह गाँव के सरकारी स्कूल से हुई थी, जहाँ उन्होंने उर्दू में तालीम हासिल की थी. गाँव के लोग आज भी उनकी यादों को संजोए हुए है, और 1938-39 के दौरान उनकी वार्षिक परीक्षा का परिणाम अब भी वहां के अधिकारियों के पास एक अमानत के रूप में रखा है. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा के बाद कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में स्नातक की डिग्री हासिल की, और फिर 1960 में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में पीएचडी की डिग्री हासिल की. शिक्षा के बाद मनमोहन सिंह को 1966 से 1969 तक व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में काम करने का मौका मिला. इसके बाद उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी के दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में प्रोफेसर के रूप में पढ़ाया.

डॉ. मनमोहन सिंह उस दौर के आर्थिक मामलों के नायक माने जाते थे, क्योंकि उनके जैसे वित्त विशेषज्ञ कम ही थे. इसलिए वह 1980 से 1982 तक योजना आयोग का भी हिस्सा रहे. 1985 तक उन्हें भारतीय रिज़र्व बैंक का गवर्नर बना दिया गया. 1989 में चन्द्रशेखर सरकार के दौरान डॉ. मनमोहन सिंह को विशेष अवरोधक का मुख्य आर्थिक सलाहकार बनाया गया और फिर 1991 में जब पीवी नरसिम्हा राव की सरकार बनी, तो डॉ. मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री नियुक्त किया गया.

डॉ. मनमोहन सिंह के कार्यकाल में 1991 में भारत ने एक ऐतिहासिक आर्थिक सुधार की दिशा में कदम बढ़ाया. भारत में उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण (LPG) की प्रक्रिया शुरू हुई, जिसकी वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था ने तेज़ी से विकास किया. विदेशी कंपनियों को भारत में व्यापार करने की इजाज़त दी गई, और भारतीय बाज़ार में प्रतिस्पर्धा बढ़ी. इसके नतीजे में व्यापारी घाटा कम हुआ, भुगतान संतुलन में सुधार हुआ और लाखों भारतीयों के लिए रोज़गार के अवसर पैदा हुए.

इसके अलवा डॉ. मनमोहन सिंह ने भारतीय अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए कई अहम कदम उठाए. उस समय विदेशी भंडार की कमी थी और भारत के लिए कच्चा तेल और अन्य चीजें खरीदना संभव नहीं था, केवल 15 दिनों का विदेशी भंडार बचा था. मनमोहन सिंह ने अपने मुल्क का सोना स्विट्जरलैंड के बैंक में गिरवी रखा और फिर अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से रकम हासिल की. उनकी इस सूझबूझ और नेतृत्व ने भारत को एक बड़े आर्थिक संकट से बचाया.

2004 में जब कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व में यूपीए सरकार सत्ता में आई, तो सोनिया गाँधी ने डॉ. मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री नियुक्त किया, उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद मुल्क में कई अहम नीतिगत बदलाव हुए. उन्होंने आम आदमी के लिए कई कल्याणकारी स्कीमे शुरू की. 2009 में, उन्होंने ‘शिक्षा का अधिकार’ कानून पेश किया, जिसके तहत 6 से 14 साल की उम्र के हर बच्चे को मुफ्त शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार मिला. उनके नेतृत्व में ‘भोजन के अधिकार’ का कानून भी लागू हुआ, जिसकी वजह से गरीबों को सस्ते दामो पर खाद्दान्न मिल सका. इस तरह डॉ. मनमोहन सिंह ने कई सामाजिक और आर्थिक सुधारों को लागू किया, जिनके प्रभावा मुल्क में अब भी नज़र आ रहे हैं.

डॉ. मनमोहन सिंह का व्यक्तित्व सरल, ईमानदार और समर्पित था. प्रधानमंत्री बनने से पहले उनके पास मारुति 800 कार थी, लेकिन जब वह प्रधानमंत्री बन गए, तो उन्हें BMW जैसी महंगी कार चलानी पड़ी, जो उन्हें ज़ाती तौर पर पसंद नहीं थी. वह मुल्क की सेवा के लिए पूरी तरह से समर्पित थे और उनके फैसले हमेशा राष्ट्रहित को ध्यान में रखते हुए होते थे. उनका निधन एक बड़ी क्षति है, लेकिन उनके योगदान और सिद्धांत हमेशा हमारे साथ रहेंगे.

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  • Iram Fatima

    मेरा नाम इरम फातिमा है। मैं मूल रूप से लखनऊ की रहने वाली हूं और मैंने पत्रकारिता करियर दो साल पहले एक अखबार के साथ शुरू किया था और वर्तमान में पिछले कुछ महीनों से डिजिटल प्लेटफॉर्म पर सक्रिय हूं और ग्लोबल बाउंड्री में असिस्टेंट कंटेंट प्रोडूसर के रूप में काम कर रही हूं।

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