Bollywood: ममता कुलकर्णी का नाम बॉलीवुड की उन अदाकाराओं में शुमार है, जिनका करियर 90 के दशक में शिखर पर था. सलमान खान, शाहरुख़ खान, अक्षय कुमार जैसे दिग्गज सितारों के साथ उनकी जोड़ी को लोग आज भी याद करते हैं. आज वह अपने जीवन के एक नए अध्याय में व्यस्त हैं, जो पूरी तरह से धर्म और अध्यात्म से जुड़ा हुआ है.
ममता कुलकर्णी का जन्म 20 अप्रैल 1972 को मुंबई, महाराष्ट्र में एक मराठी ब्राह्मण परिवार में हुआ था. इनका पालन पोषण एक मिडल क्लास परिवार में हुआ, लेकिन फिल्मों में कदम रखने के बाद उनकी जिंदगी बदल गई. ममता ने 1991 में अपनी फ़िल्मी करियर की शुरुआत तमिल फिल्म ‘नान बरगल’ से की, लेकिन हिंदी सिनेमा में पहचान उन्हें 1992 में आई फिल्म ‘मेरा दिल तेरे लिए’ और ‘तिरंगा’ से मिली.
1993 में आई फिल्म ‘आशिक आवारा’ ममता की पहली बड़ी हिट साबित हुई. जिसके बाद उन्हें फिल्म फेयर अवार्ड भी मिला. उन्होंने कई भाषाओँ में फिल्में की, जिसमें हिंदी, तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम और बंगाली शामिल थीं. 1994 में आई फिल्म ‘क्रांतिवीर’ ने धमाल मचाया. यह फिल्म साल की तीसरी सबसे ज़्यादा कमाई करने वाली फिल्म बनी थी. इसके बाद ममता ने 1995 में ‘करण-अर्जुन’ जैसी बड़ी हिट फिल्म दी, जिसमें वह सलमान खान और शाहरुख़ खान के साथ दिखाई दीं.
ममता ने बॉलीवुड में कई आइटम सॉन्ग किए, जो उस समय की सबसे चर्चित और विवादित बातों में से एक थे. उन्होंने ‘चुम्मा-चुम्मा’ जैसे सॉन्ग किए, जो काफी पॉपुलर हुए थे. इसके अलावा, ममता ने एक मैगज़ीन के कवर पर सेमी न्यूड तस्वीर भी खिंचाई, जो उस दौर में एक बड़ा विवाद था. ममता की खूबसूरती और उनकी अभिनय क्षमता ने उन्हें बड़ी पहचान दिलाई. उनका करियर बॉलीवुड में लगातार ऊपर कि ओर बढ़ता गया.
ममता का जीवन सिर्फ फ़िल्मी चमक-धमक तक ही सीमित नहीं था. उनके जीवन में एक बड़ा मोड़ तब आया जब उनका प्यार विक्की गोस्वामी से हुआ, जो ड्रग्स तस्करी के मामले में पकड़ा गया था. विक्की के साथ रहने के कारण ममता को भी कानूनी मुश्किलों का सामना करना पड़ा. लेकिन साल 2024 में ममता को अदालत ने आरोपों से बरी कर दिया.
2003 के बाद, ममता ने फ़िल्मी दुनिया से अलविदा ले लिया था और एक साध्वी के रूप में जीवन जीने लगीं. उन्होंने 23 साल से अधिक समय तक साधना की ओर भक्ति के रास्ते पर चलने का फैसला लिया. ममता कुलकर्णी के इस आध्यात्मिक जीवन में एक और बड़ा मोड़ तब आया, जब उन्हें किन्नर अखाड़ा के महामंडलेश्वर का पद मिला, हलांकि बाद में किन्नर अखाड़ा के संस्थापक ऋषि अजय दास ने उन्हें पद से हटा दिया, लेकिन जूना अखाड़े की आचार्य लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी जो की खुद एक किन्नर हैं उन्होंने इस फैसले को चुनौती दी है. वह ममता को किन्नर अखाड़ा की महामंडलेश्वर मानती हैं और इस मुद्दे पर क़ानूनी कदम उठाने की तैयारी कर रही हैं.
ममता कुलकर्णी का कहना है कि उन्होंने अपने पुराने जीवन को लेकर कोई पछतावा नही किया. वह अपने पुराने दिनों को भूलकर आज के जीवन में संतुष्ट हैं और यही जीवन जीने की प्रेरणा देती हैं. उनका मानना है कि अगर किसी इन्सान ने कई गलतियां की हैं, तो भी उसे अपनी साधना के रास्ते पर चलते हुए जीवन को सही दिशा में मोड़ने का प्रयास करना चाहिए.