Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद एक गंभीर समस्या बनी हुई है. 1967 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेता चारु मजूमदार और कानू सान्याल ने सत्ता के खिलाफ एक सशस्त्र आन्दोलन की शुरुआत की थी. नक्सलवाड़ी से इस मुद्दे पर पहली बार आवाज़ उठाई गई, जिससे यह आन्दोलन और भी मजबूत हुआ. मजूमदार को नक्सलवाद का जनक कहते हैं.
छत्तीसगढ़ नक्सलवाद से प्रभावित क्षेत्रों से घिरा हुआ है, इसका मुख्य कारण आर्थिक पिछड़ापन और प्राशासनिक असमानताएं हैं. छत्तीसगढ़ के घने जंगल, नदियाँ और खनिज संसाधन नक्सलियों को शरण देने का काम कर रहे है, यही कारण है यह क्षेत्र नक्सलवाद का केंद्र बन गया है. इसकी शुरुआत छत्तीसगढ़ के बस्तर से हुई थी. 1960 के दशक में भोपाल्पतटनम से कुछ असामाजिक तत्वों ने इस क्षेत्र में प्रवेश किया था. आंध्र प्रदेश में पहले से नक्स्ली गतिविधियाँ चल रही थीं, लेकिन 1967-68 में छत्तीसगढ़ में इसे नक्सलवाद के रूप में मान्यता मिली.
छत्तीसगढ़ में पिछले कई दशकों से यह समस्या बढ़ती जा रही है. कुछ दिनों पहले कोंडागांव में एक भाजपा नेता पर नक्सली हमले ने राज्य की सुरक्षा को और अधिक चिंताजनक बना दिया है. इसके अलावा दरबा घाटी में काँग्रेस पार्टी के नेताओं की हत्या ने पूरे देश में नेक सनसनी पैदा कर दी है. 6 अप्रैल 2010 को CRPF के 75 जवान शहीद हो गए थे. इस घटना से पूरा देश हिल गया था यह अब तक सबसे बड़ी घटना थी. छत्तीसगढ़ के बिस्तर ज़िले में आज़ादी के बाद से विकास की स्तिथि बहुत खराब है. यहाँ सरकार और प्रशासन केवल प्रतीकों के रूप में नजर आते हैं, जिससे नक्सलियों को मजबूती मिली है. यदि स्थानीय लोग नक्सलियों के खिलाफ खड़े हो जाएँ तो उनकी ताकत को खत्म करना आसान हो जाएगा. सभी को एक जुट होकर काम करने की आवश्यकता है. छत्तीसगढ़ के लोग अपनी सरलता और मिलनसारी के लिए जाने जाते हैं.
नक्सलियों का कहना है कि वह आदिवासियों और गरीबों के हक के लिए लड़ रहे है, जिन्हें सरकार ने दशको से अनदेखा किया है. इन इलाकों में न तो सड़को का निर्माण हुआ है, न पानी पीने की व्यवस्था है, और न ही शिक्षा, स्वास्थ सेवाएं है. सत्ता में बैठे लोगों की तरफ से भ्रष्टाचार और सामजिक असमानताओं को खत्म करने की कोई ठोस कोशिश नहीं हो रही है. इसके चलते अब नक्सली बिना किसी रोक टोक के अपनी गतिविधियाँ जारी रखे है. इस हमले में न केवल पुलिस अधिकारी, बल्कि निर्दोष आदिवासी भी शिकार बन रहे हैं.
छत्तीसगढ़ नक्सलवाद नें अब तक लगभग 4 अरब रूपये से ज्यादा सरकारी और निजी सम्पत्तियों को नष्ट किया है. इस स्तिथि से निपटने के लिए सरकार ने कई उपाय किए हैं, जैसे सलवा जुडूम, ग्रीन हंट और शान्ति वार्ता की पेशकश. हालंकि सलवा जुडूम एक जन आन्दोलन है, फिर भी इसे सरकार का समर्थन मिल रहा है. केंद्र सरकार सभी नक्सली प्रभावित राज्यों के लिए एक संयुक्त रणनीति बनाने की कोशिश कर रही है ताकि नक्सली आसानी से एक राज्य से दुसरे राज्य भाग न सकें.
आर्थिक जानकारों का कहना है कि यदि नक्सली हिंसा जारी रही, तो भारत अपने सीमित संसाधनों को सुरक्षा पर खर्च करने के कारण विश्व शक्ति के रूप में उभर नहीं पाएगा. यह स्तिथि गंभीर है, और इसके लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता है. बस्तर की विकास की राह में यह मुद्दा महत्वपूर्ण है, और इसे सुलझाने के लिए सभी को मिलकर प्रयास करने होंगे. स्थानीय समुदायों की सुरक्षा सुनिक्ष्चित करने और विकास को बढ़ावा देने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है. इस समस्या का समाधान केवल सुरक्षा बलों के प्रयासों से नहीं होगा, बल्कि स्थानीय विकास और सामुदायिक सहयोग से ही संभव है.